वक़्त मिले न मिले
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जो भी लम्हा मिले, चुन-चुनकर बटोरती हूँ
दामन में अपने जतन से सहेजती हूँ,
न जाने फिर कभी वक़्त मिले न मिले।
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जो भी लम्हा मिले, चुन-चुनकर बटोरती हूँ
दामन में अपने जतन से सहेजती हूँ,
न जाने फिर कभी वक़्त मिले न मिले।
- जेन्नी शबनम (1. 4. 2009)
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