आँखों में नमी तैरी है
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बदली घिर रही आसमान में, भादो तो आया नहीं
धुंध पसर रही आँगन में, माघ तो आया नहीं
मानो तपते जेठ की असह्य गरमी हो
घाम से मेरे मन की नरमी पिघली है।
मानो सावन का मौसम बिलखता हो
आहत मन से मेरी आँखों में नमी तैरी है।
- जेन्नी शबनम (8. 4. 2009)
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