ज़िन्दगी तमाम हो जाएगी
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पल भर मिले
लम्हा भर थमे
क़दम भर भी तो साथ न चले,
यूँ साथ हम चले ही कब थे?
जो अब, न चलने का हुक्म देते हो।
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पल भर मिले
लम्हा भर थमे
क़दम भर भी तो साथ न चले,
यूँ साथ हम चले ही कब थे?
जो अब, न चलने का हुक्म देते हो।
एक दूसरे को, आख़िरी पल-सा देखते हुए
दो समीप समानांतर राहों पर चल दिए थे,
चाहा तो तुमने ही था सदा, मैंने नहीं,
फिर भी, इल्ज़ाम मुझे ही देते हो।
दो समीप समानांतर राहों पर चल दिए थे,
चाहा तो तुमने ही था सदा, मैंने नहीं,
फिर भी, इल्ज़ाम मुझे ही देते हो।
चलो यूँ ही सही, ये भी क़ुबूल है
मेरी व्यथा ही, तुम्हारा सुकून है,
बसर तो होनी है, हर हाल में हो जाएगी
सफ़र मुकम्मल न सही
ज़िन्दगी तमाम हो जाएगी।
मेरी व्यथा ही, तुम्हारा सुकून है,
बसर तो होनी है, हर हाल में हो जाएगी
सफ़र मुकम्मल न सही
ज़िन्दगी तमाम हो जाएगी।
- जेन्नी शबनम (21. 5. 2009)
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