तुममें अपनी ज़िन्दगी
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सोचती हूँ
कैसे तय किया होगा तुमने
ज़िन्दगी का वो सफ़र
जब तन्हा ख़ुद में जी रहे थे
और ख़ुद से ही एक लड़ाई लड़ रहे थे।
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सोचती हूँ
कैसे तय किया होगा तुमने
ज़िन्दगी का वो सफ़र
जब तन्हा ख़ुद में जी रहे थे
और ख़ुद से ही एक लड़ाई लड़ रहे थे।
जानती हूँ
उस सफ़र की पीड़ा
वाक़िफ़ भी हूँ उस दर्द से
जब भीड़ में कोई तन्हा रह जाता है
नहीं होता कोई अपना
जिससे बाँट सके ख़ुद को।
तुम्हारी हार
मैं नहीं सह सकती
और तुम
मेरी आँखों में आँसू
चलो कोई नयी राह तलाशते हैं
साथ न सही दूर-दूर ही चलते हैं
बीती बातें, मैं भी छोड़ देती हूँ
और तुम भी ख़ुद से
अलग कर दो अपना अतीत
तुम मेरी आँखों में हँसी भरना
और मैं तुममें अपनी ज़िन्दगी।
- जेन्नी शबनम (8. 1. 2011)
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और तुम भी ख़ुद से
अलग कर दो अपना अतीत
तुम मेरी आँखों में हँसी भरना
और मैं तुममें अपनी ज़िन्दगी।
- जेन्नी शबनम (8. 1. 2011)
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