आदम और हव्वा
***
क़ुदरत की कारस्तानी है
स्त्री-पुरुष की कहानी है
फल खाकर आदम-हव्वा ने
की ग़ज़ब नादानी है।
***
क़ुदरत की कारस्तानी है
स्त्री-पुरुष की कहानी है
फल खाकर आदम-हव्वा ने
की ग़ज़ब नादानी है।
चालाकी क़ुदरत की या
आदम-हव्वा की मेहरबानी है
बस गई छोटी-सी दुनिया
जैसे अन्तरिक्ष में चूहेदानी है।
क़ुदरत ने बसाया यह संसार
जिसमें आदम है, हव्वा है
उन्होंने खाया एक सेब मगर
संतरे-सी छोटी यह दुनिया है।
सोचती हूँ, काश!
एक दो और आदम-हव्वा आए होते
आदम-हव्वा ने दो फल खाए होते
दुनिया बड़ी होती, गहमागहमी और बढ़ जाती।
दुनिया दोगुनी, लोग दोगुने होते
हर घर में एक ही जगह पर दो आदमी होते
न कोई अकेला उदास होता
न कोई अनाथ होता
न कहीं तनहाई होती
न कोई तनहा मन रोता।
न सुनसान इलाक़ा होता
हर तरफ़ इक रौनक होती
कहीं आदम के ठहाके
कहीं चूड़ियों की खनक होती।
हर जगह आदमज़ाद होता
जवानों का मदमस्त जमघट होता
कहीं बच्चों की चहचहाती जमात होती
कहीं बुज़ुर्गों की ख़ुशहाल टोली होती
कहीं श्मशान पर शवों का रंगीन कारवाँ होता
क्या न होता और क्या-क्या होता।
सोचो ज़रा ये भी तुम
होता नहीं कोई गुमसुम
मृत्यु पर भी लोग ग़मगीन न होते
गीत मौत का पुरलय होता
जीवन-मृत्यु दोनों का जश्न होता
वहाँ (स्वर्गलोक) के अकेलेपन का भय न होता
कहीं कोई बिनब्याहा बेचारा न होता
कहीं कोई निर्वंश बेसहारा न होता
एक नहीं दो डॉक्टर आते
कोई एक अगर बीमार होता।
क्या रंगीन फ़िज़ा होती
क्या हसीन समा होता
हर जगह क़ाफ़िला होता
हर तरफ़ त्योहार होता।
सोचती हूँ, काश!
एक और आदम होता
एक और हव्वा होती
उन्होंने एक और फल खाए होते
दुनिया तरबूज-सी बड़ी होती
सूरज से न डरी होती
तरबूज-सी बड़ी होती।
- जेन्नी शबनम (16.3.2011)
(होली के अवसर पर)
______________________