मुक्ति पा सकूँ
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मस्तिष्क के जिस हिस्से में विचार पनपते हैं
जी चाहता है, उसे काटकर फेंक दूँ
न कोई भाव जन्म लेंगे, न कोई सृजन होगा।
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मस्तिष्क के जिस हिस्से में विचार पनपते हैं
जी चाहता है, उसे काटकर फेंक दूँ
न कोई भाव जन्म लेंगे, न कोई सृजन होगा।
कभी-कभी अपने ही सृजन से भय होता है
जो रच जाते हैं, वे जीवन में उतर जाते हैं
जो जीवन में उतर गए, वे रचना में सँवर जाते हैं।
कई बार पीड़ा लिख देती हूँ और त्रासदी जी लेती हूँ
कई बार अपनी व्यथा, जो जीवन का हिस्सा है
पन्नों पर उतार देती हूँ।
विचार का पैदा होना, बाधित करना होगा अविलम्ब
ताकि वर्तमान और भविष्य के विचार और जीवन से
मुक्ति पा सकूँ।
-जेन्नी शबनम (11.10.2011)
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-जेन्नी शबनम (11.10.2011)
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