मन छुहारा (7 ताँका)
6.
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1.
अपनी आत्मा
रोज़-रोज़ कूटती
औरत ढ़ेंकी
पर आस सँजोती
अपनी पूर्णता की !
2.
मन पिंजरा
मुक्ति की आस लगी
उड़ना चाहे
जाए तो कहाँ जाए
दुनिया तड़पाए !
3.
न देख पीछे
सब अपने छूटे
यही रिवाज़
दूरी है कच्ची राह
मन के नाते पक्के !
4.
ज़िन्दगी सख्त
रोज़-रोज़ घिसती
मगर जीती
पथरीली राहों पे
निशान है छोड़ती !
5.
मन छुहारा
ज़ख़्म सह-सह के
बनता सख्त
रो-रो कर हँसना
जीवन का दस्तूर !
6.
मन जुड़ाता
गर अपना होता
वो परदेसी
उमर भले बीते
पर आस न टूटे !
7.
लहलहाते
खेत औ खलिहान
हरी धरती
झूम-झूम है गाती
खुशहाली के गीत !
- जेन्नी शबनम (सितम्बर 10, 2012)
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