अकेले से लगे तुम
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आज जाते हुए
बहुत असहाय से दिखे तुम
कंधों पर भारी बोझ
कुछ अपना कुछ परायों का,
इस जद्दोज़ेहद में
अपना औचित्य बनाए रखने का
तुम्हारा अथक प्रयास
हर विफलता के बाद भी
स्वयं को साबित करने की
तुम्हारी दृढ आकांक्षा,
साज़िशों को विफल करने के प्रयास में
साज़िश में उलझते
आज बहुत अकेले से लगे तुम,
तुमको कटघरे में देखना, दुर्भाग्यपूर्ण है
पर सदैव तुम कटघरे में खड़े कर दिए जाते हो
उन सब के लिए
जो तुम्हारे हिसाब से जायज़ था,
जिसे तुम अपने पक्ष में मानते हो
वो ही तुम्हारे ख़िलाफ़ गवाही देते हैं
और सबूत भी रचते हैं,
सही गलत का निर्धारण, जाने कौन करे
परमात्मा आज कल सबके साथ नहीं
कम से कम उनके तो बिल्कुल नहीं
जो तुम्हारी तरह आम हैं।
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आज जाते हुए
बहुत असहाय से दिखे तुम
कंधों पर भारी बोझ
कुछ अपना कुछ परायों का,
इस जद्दोज़ेहद में
अपना औचित्य बनाए रखने का
तुम्हारा अथक प्रयास
हर विफलता के बाद भी
स्वयं को साबित करने की
तुम्हारी दृढ आकांक्षा,
साज़िशों को विफल करने के प्रयास में
साज़िश में उलझते
आज बहुत अकेले से लगे तुम,
तुमको कटघरे में देखना, दुर्भाग्यपूर्ण है
पर सदैव तुम कटघरे में खड़े कर दिए जाते हो
उन सब के लिए
जो तुम्हारे हिसाब से जायज़ था,
जिसे तुम अपने पक्ष में मानते हो
वो ही तुम्हारे ख़िलाफ़ गवाही देते हैं
और सबूत भी रचते हैं,
सही गलत का निर्धारण, जाने कौन करे
परमात्मा आज कल सबके साथ नहीं
कम से कम उनके तो बिल्कुल नहीं
जो तुम्हारी तरह आम हैं।
- जेन्नी शबनम (16. 2. 2012)
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