कोई हिस्सेदारी नहीं
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मेरे सारे तर्क
कैसे एक बार में एक झटके से
ख़ारिज कर देते हो
और कहते कि तुम्हें समझ नहीं,
जाने कैसे
अर्थहीन हो जाता है मेरा जीवन
अर्थहीन हो जाता है मेरा जीवन
जबकि परस्पर
हर हिस्सेदारी बराबर होती है,
सपने देखना और जीना
साथ ही तो शुरू हुआ
रास्ते के हर पड़ाव भी साथ मिले
साथ ही हर तूफ़ान को झेला
जब भी हौसले पस्त हुए
एक दूसरे को सहारा दिया,
अब ऐसा क्यों
कि मेरी सारी साझेदारी बोझ बन गई
मैं एक नाकाम
जिसे न कोई शऊर है न तमीज़
जिसका होना, तुम्हारे लिए
शायद ज़िन्दगी की सबसे बड़ी भूल है,
बहरहाल
ज़िन्दगी है
सपने हैं
शिकवे हैं
पंख है
परवाज़ है
मगर अब हमारे बीच
कोई हिस्सेदारी नहीं!
- जेन्नी शबनम (21. 4. 2012)
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