पीर जिया की
(7 ताँका)
(7 ताँका)
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आँखों की कोर
जहाँ पे चुपके से
ठहरा लोर,
कहे निःशब्द कथा
मन अपनी व्यथा !
2.
छलके आँसू
बह गया कजरा
दर्द पसरा,
सुधबुध गँवाए
मन है घबराए !
3.
सह न पाए
मन कह न पाए
पीर जिया की,
फिर आँसू पिघले
छुप-छुप बरसे !
4.
मौसम आया
बहा कर ले गया
आँसू की नदी,
छँट गयी बदरी
जो आँखों में थी घिरी !
5.
मन का दर्द
तुम अब क्या जानो
क्यों पहचानो,
हुए जो परदेसी
छूटे हैं नाते देसी !
6.
बैरंग लौटे
मेरी आँखों में आँसू
खोए जो नाते,
अनजानों के वास्ते
काहे आँसू बहते !
7.
आँख का लोर
बहता शाम-भोर,
राह अगोरे
ताखे पर ज़िंदगी
नहीं कहीं अँजोर !
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लोर - आँसू
अँजोर - उजाला
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- जेन्नी शबनम (24. 9. 2013)
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