प्रीत
*******
1.
प्रीत की डोरी
ख़ुद ही थी जो बाँधी
ख़ुद ही तोड़ी।
2.
प्रीत रुलाए
मन को भरमाए
पर टूटे न।
3.
1.
प्रीत की डोरी
ख़ुद ही थी जो बाँधी
ख़ुद ही तोड़ी।
2.
प्रीत रुलाए
मन को भरमाए
पर टूटे न।
3.
प्रीत की राह
बस काँटे ही काँटे
पर चुभें न।
4.
प्रीत निराली
सूरज-सी चमके
कभी न ऊबे।
5.
प्रीत की भाषा,
उसकी परिभाषा
प्रीत ही जाने।
6.
प्रीत औघड़
जिसपे मंत्र फूँके
वह न बचे।
7.
प्रीत उपजे
जाने ये कैसी माटी
खाद न पानी ।
बस काँटे ही काँटे
पर चुभें न।
4.
प्रीत निराली
सूरज-सी चमके
कभी न ऊबे।
5.
प्रीत की भाषा,
उसकी परिभाषा
प्रीत ही जाने।
6.
प्रीत औघड़
जिसपे मंत्र फूँके
वह न बचे।
7.
प्रीत उपजे
जाने ये कैसी माटी
खाद न पानी ।
- जेन्नी शबनम (8. 12. 2013)
_____________________