मरघट
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रिश्तों के मरघट में चिता है नातों की
जीवन के संग्राम में दौड़ है साँसों की
कब कौन बढ़े कब कौन थमे
कोलाहल बढ़ते फ़सादों की
ऐ उम्र! अब चली भी जाओ
बदल न पाओगी दास्ताँ जीवन की।
- जेन्नी शबनम (30. 1. 2018)
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