खिड़की स्तब्ध है
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खिड़की, महज़ एक खिड़की नहीं
वह एक एहसास है, संभावना है
भीतर और बाहर के बीच का भेद
वह बख़ूबी जानती है
इस पार छुपा हुआ संसार है
जहाँ की आवोहवा मौन है
उस पार विस्तृत संसार है
जहाँ बहुत कुछ मनभावन है
खिड़की असमंजस में है
खिड़की सशंकित है
कैसे पाट सकेगी
कैसे भाँप सकेगी
दोनों संसार को
एक जानदार है
एक बेजान है,
खिड़की स्तब्ध है!
- जेन्नी शबनम (18. 8. 2018)
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