लौट जाऊँगी
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कब कहाँ खो आई ख़ुद को
कब से तलाश रही हूँ ख़ुद को
बात-बात पर कभी रूठती थी
अब रूठूँ तो मनाएगा कौन
बार-बार पुकारेगा कौन
माँ की पुकार में दुलार का नाम
अब भी आँखों में ला देता नमी
ठहर गई है मन में कुछ कमी
अब तो यूँ जैसे मैं बेनाम हो गई
अपने रिश्तों के परवान चढ़ गई
कोई पुकारे तो यूँ महसूस होता है
गर्म सीसे का ग़ुब्बारा ज़ोर से मारा है
कभी मेरी हँसी और ठहाके गूँजते थे
अब ख़ुद से ही बतियाते मौसम बदलते हैं
टी. वी. की शौक़ीन कृषि दर्शन तक देखती थी
अब टी. वी. तो चलता है मगर क्या देखा याद नहीं
वक़्त ने एक-एककर मुझसे मुझको छीन लिया
ख़ुद को तलाशते-तलाशते वक़्त यूँ ही गुज़र गया
सारे शिकवे शिकायत गंगा से कह आती हूँ
आँखों का पानी सिर्फ़ गंगा ही देखती है
वह भी ढाढ़स बँधाने बदली को भेज देती है
मेरी आँखों-सी बदली भी जब तब बरसती है
वो मंज़र जाने कब आएगा
वो सुखद पल जाने कब आएगा
सारे नातों से घिरी हुई मैं
एक झूठ के चादर से लिपटी मैं
सबको ख़ुशामदीद कह जाऊँगी
तन्हा सफ़र पर लौट जाऊँगी
खो आई थी कभी ख़ुद को
ख़ुद से मिलकर
ख़ुद के साथ चली जाऊँगी
ख़ुद के साथ लौट जाऊँगी।
- जेन्नी शबनम (16. 11. 2018)
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