लम्हों का सफ़र
मन की अभिव्यक्ति का सफ़र
गुरुवार, 22 नवंबर 2018
594. रूठना (क्षणिका)
रूठना
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जब भी रूठी
खो देने के भय से ख़ुद ही मान गई
रूठने की आदत तो बिदाई के वक्त
खोंइचा से निकाल नइहर छोड़ आई।
- जेन्नी शबनम (22. 11. 18)
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