अंतर्मन
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1.
अंतर्मन
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मेरे अंतर्मन में पड़ी हैं
ढेरों अनकही कविताएँ
तुम मिलो कभी
तो फ़ुर्सत में सुनाऊँ तुम्हें।
-०-
2.
सवाल
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हज़ारों सवाल हैं मेरे अंतर्मन में
जिनके जवाब तुम्हारे पास हैं
तुम आओ गर कभी
फ़ुर्सत में जवाब बताना।
-०-
3.
प्रश्न
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मेरा अंतर्मन
मुझसे प्रश्न करता है-
आख़िर कैसे कोई भूल जाता है
सदियों का नाता पलभर में,
उसके लिए जो कभी अपना नहीं था
न कभी होगा।
-०-
4.
मियाद
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हमारे फ़ासले की मियाद
जाने किसने तय की है
मैंने तो नहीं की,
क्या तुमने?
-०-
5.
तय
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क्षण-क्षण कण-कण
तुम्हें ढूँढ़ती रही
जानती हूँ मैं अहल्या नहीं कि
तुमसे मिलना तय हो।
-०-
6.
वापसी
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कुछ तो हुआ ऐसा
जो दरक गया मन
गर वापसी भी हो तुम्हारी
टूटा ही रहेगा तब भी यह मन।
-०-
7.
आदत
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रात का अँधेरा अब नहीं डराता मुझे
उसकी सारी कारस्तानियाँ मुझसे हार गईं
मैंने अकेले जीने की आदत जो पाल ली।
-०-
8.
लुका-चोरी
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ढूँढ़कर थक चुकी
दिन का सूरज, रात का चाँद
दोनों के साथ, लुका-चोरी खेल रही थी
वे दग़ा दे गए
छल से मुझे तन्हा छोड़ गए।
-०-
9.
तिजोरी
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अब आओ तो चलेंगे
उन यादों के पास
जिसे हमने छुपाया था
समय से माँगी हुई तिजोरी में
शायद कई जन्मों पहले।
-०-
10.
तजरबा
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सोचा न था
ऐसे तजरबे भी होंगे
दुनिया की भीड़ में
सदा हम तन्हा ही रहेंगे।
-०-
11.
चुप
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चुप-से दिन, चुप-सी रातें
चुप-से नाते, चुप-सी बातें
चुप है ज़िन्दगी
कौन करे बातें
कौन तोड़े सघन चुप्पी।
-०-
12.
ग़ुस्सा
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तुमसे मिलकर जाना यह जीवन क्या है
बेवजह ग़ुस्सा थी
ख़ुद को ही सता रही थी
तुम्हारी एक हँसी
तुम्हारा एक स्पर्श
तुम्हारे एक बोल
मैं जीवन को जान गई।
-०-
13.
क्षण
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वक़्त बस एक क्षण देता है
बन जाएँ या बिगड़ जाएँ
जी जाएँ या मर जाएँ
उस एक क्षण को मुट्ठी में समेटना है
वर्तमान भी वही भविष्य भी वही
बस एक क्षण
जो हमारा है सिर्फ़ हमारा।
-०-
14.
पाप-पुण्य
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नज़दीकियाँ
पाप-पुण्य से परे होती हैं
फिर भी कभी-कभी
फ़ासलों पे रहकर
जीनी होती है ज़िन्दगी।
-०-
15.
तुम
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चाहती हूँ
धूप में घुसकर तुम आ जाओ छत पर
बड़े दिनों से मुलाक़ात न हुई
जीभर कर बात न हुई
यूँ भी सुबह की धूप देह के लिए ज़रूरी है
और तुम मेरे मन के लिए।
-०-
- जेन्नी शबनम (9. 1. 2019)
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