कहासुनी जारी है
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पल-पल समय के साथ कहासुनी जारी है
वो कहता रहता है, मैं सुनती रहती हूँ,
अरेब-फ़रेब, जो उसका मन बोलता रहता है
कान में पिघलता सीसा, उड़ेलता रहता है
मैं हुँकारी भरती रहती हूँ, मुस्कुराती रहती हूँ
अपना अपनापा दिखाती रहती हूँ।
नहीं याद क्या-क्या सुनती रहती हूँ
नहीं याद क्या-क्या बिसराती जाती हूँ
जितना मेरा मन किया, उतना ही सुनती हूँ
बहुत कुछ अनसुना करती हूँ।
न उसे पता कि मैंने क्या-क्या न सुना
न मुझे पता कि उसने
मुझे कितना-कितना धिक्कारा
कितना-कितना दुत्कारा।
फिर भी सब कहते हैं
हमारे बीच बड़ा प्यारा सम्बन्ध है
न हम लड़ते-झगड़ते दिखते हैं
न कभी कहासुनी होती है
बहुत प्यार से हम जीते हैं।
यह हर कोई जानता है
कहासुनी में दोनों को बोलना पड़ता है
अपना-अपना कहना होता है
दूसरों का सुनना होता है।
पर समय और मेरे बीच अजब-सा नाता है
वह कहता जाता है, मै सुनती जाती हूँ
कहासुनी जारी रहती है
कहासुनी जारी है।
-जेन्नी शबनम (20.5.2020)
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