शनिवार, 10 अक्टूबर 2020

688. साथी (चार लाइन की भावाभिव्यक्तियाँ) (12 क्षणिका)

साथी 

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1. 
साथी 
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मेरे साथी! तुम तब थे कहाँ   
ज़ख़्मों से जब हम थे घायल हुए   
इक तीर था निशाने पे लगा   
तन-मन मेरा जब ज़ख़्मी हुआ।  

2.
एहसान 
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उम्र भर चले जलती धूप में   
पाँव के छाले अब क़दम है रोके   
कभी जो छाँव कोई, दमभर मिली   
तुम कहते कि एहसान तेरा हुआ।       

3. 
तू कहाँ था 
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ख़्वाहिशों की लम्बी क़तारें थीं   
फफोले-से सपने फूटते रहे   
जब दर्द पर मेरे हँसती थी दुनिया   
तू कहाँ था, मेरे साथी बता।     

4. 
पराया 
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जब भटकते रहे थे हम दरबदर   
मंदिर-मस्जिद सब हमसे बेख़बर   
घाव पर नमक छिड़कती थी दुनिया   
मेरा दर्द भला क्यों पराया हुआ।     

5.
मेरे हिस्से 
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फूल और खार दोनों बिछे थे   
सारे खार क्यों मेरे हिस्से   
दुखती रगों को छेड़कर तुमने   
हँसके थे सुनाए मेरे क़िस्से।     

6. 
कुछ न जीता 
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लो अब ये कहानी ख़त्म हो गई   
ज़िन्दगी अब नाफ़रमानी हो गई   
गर वापस तुम आओ तो देखना   
हम तो हारे, तुमने भी कुछ न जीता।   

7.
सौदा 
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सीले-सीले से जीवन में नहीं रौशनी   
चाँद और सूरज भी तो तेरा ही था   
शब के रातों की नमी मेरी तक़दीर   
उजालों का सौदा तुमने ही किया।     

8. 
लाज 
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नफ़रतों की दीवार गहरी हुई   
ढह न सकी, उम्र भले ठिठकी रही   
हो सके तो एक सुराख़ करना   
ज़माने की ख़ातिर लाज रखना।     

9. 
हम थे कहाँ 
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जब-जब जीवन से हारती रही   
आँखें तुमको ही ढूँढती रही   
अपनी दुनिया में उलझे रहे तुम   
बता तेरी दुनिया में हम थे कहाँ।     

10.
आँसू 
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शब के आँसू आसमाँ के आँसू   
दिन के आँसू ये किसने भरे   
धुँधली नज़रें किसकी मेहरबानी   
कभी तो पूछते तुम अपनी ज़बानी।     

11. 
उदासी
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दरम्याने-ज़िन्दगी ये कैसा वक़्त आया है   
ज़िन्दगी की तड़प भी और मौत की चाहत है   
लफ्ज़-लफ्ज़ बिखरे हुए, अधरों पर ख़ामोशी है   
ज्यों छिन रही हो ज़िन्दगी, मन में यूँ उदासी है।     

12.
अलविदा 
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अब जो लौटो तुम तो हम क्या करें   
ज़ख़्म सारे रिस-रिस के अब नासूर बने   
तेरे क़र्ज़ के तले है जीवन बीता   
ऐ साथी मिलेंगे कभी अलविदा-अलविदा।  

- जेन्नी शबनम (10. 10. 2020) 
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