वसीयत
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ज़ीस्त के ज़ख़्मों की कहानी तुम्हें सुनाती हूँ
मेरी उदासियों की यही है वसीयत
तुम्हारे सिवा कौन इसको सँभाले
मेरी यह वसीयत अब तुम्हारे हवाले
हर लफ़्ज़ जो मैंने कहे, हर्फ़-हर्फ़ याद रखना
इन लफ़्ज़ों को ज़िन्दा, मेरे बाद रखना
किसी से कुछ न कभी तुम बताना
मेरी यह वसीयत, मगर मत भूलाना
तुम्हारी मोहब्बत ही है मेरी दौलत
मेरे लफ़्ज़ ज़िन्दा हैं इसकी बदौलत।
उस दौलत ने दिल को धड़कना सिखाया
हर साँस पर था जो क़र्ज़ा चुकाया
मेरे ज़ख़्मों की अब मुझको परवाह नहीं है
लबों पे मेरे अब कोई आह नहीं है
अगर्चे अभी भी कोई सुख नहीं है
ग़म तुमने समझा, तो अब दुःख नहीं है।
ग़ैरों की भीड़ में मुझको कई अपने मिले थे
मगर जैसे सारे ही सपने मिले थे
मुझसे किसी ने कहाँ प्यार किया था
वार अपनों ने खंजर से सौ बार किया था
मन ज़ख़्मी हुआ, ताउम्र आँखों से रक्त रिसता रहा
किसे मैं बताती कि दोष इसमें किसका रहा
क़िस्मत ने जो दर्द दिया, तोहफ़ा मान सब सहेजा
मैंने क़दमों को टोका, क़िस्मत को दिया न धोखा
जीवन में नाकामियों की हज़ारों दास्तान है
हर पग के साथ बढ़ता छल का अम्बार है
मेरी हर साँस में मेरी एक हार है।
जीकर तो किसी के काम न आ सकी
मेरे जीवन की किसी को कभी भी न दरकार थी
मेरे शरीर का हर एक अंग मैंने दुनिया को दान किया
पर कभी यह न सोचा, मैंने कोई अहसान किया
मैं जब न रहूँ, कइयों के बदन को नया जीवन दिलाना
बिजली की भट्टी में इसे तुम जलाना
भट्टी में जब मेरा बदन राख बन जाएगा
आधे राख को गंगा में वहाँ लेकर जाना
वहीं पर बहाना
जहाँ मेरे अपनों का जिस्म राख में था बदला
आधे को मिट्टी में गाड़कर
रात की रानी का पौधा लगाना
मुझे रात में कोई ख़ुशबू बनाना
जीवन बेनूर था, मरकर बहक लूँ
वसीयत में यह एक ख़्वाहिश भी रख लूँ
रात की रानी बन खिलूँगी और रात में बरसूँगी
न साँस मैं माँगूँगी, न प्यार को तरसूँगी
भोर में ओस की बूँदों से लिपटी मैं दमकूँगी
दिन में बुझी भी, तो रात में चमकूँगी।
क़ज़ा की बाहों में
जब मेरी सुकून भरी मुस्कुराहट दिखे
समझना मेरे ज़ीस्त की कुछ हसीन कहानी
उसने मुझे सुनाई है
शब के लिए रात की रानी खिलाई है
जीवन में बस एक प्रेम कमाया, वह भी तुम्हारे सहारे
इतना करो कि यह प्रेम कभी न हारे
तुम्हें कसम है, एक वादा तुम करना
मेरी यह वसीयत तुम ज़रूर पूरी करना
तुम्हारे सिवा कौन इसको सँभाले
मेरी यह वसीयत अब तुम्हारे हवाले।
-जेन्नी शबनम (16.11.2020)
(मेरे बच्चों के लिए)
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