प्यारी नदियाँ (36 हाइकु)
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1.
नद से मिली
भोरे-भोरे किरणें
छटा निराली।
2.
गंगा पवित्र
नहीं होती अपवित्र
भले हो मैली।
3.
नदी की सीख -
हर क्षण बहना
नहीं थकना।
4.
राजा या रंक
सबके अवशेष
नदी का अंक।
5.
सदा हरती
गंगा पापहरणी
जग के पाप।
6.
नदी का धैर्य
उसकी विशालता,
देती है सीख।
7.
दुःखहरणी
गंगा निर्झरनी
पापहरणी।
8.
अपना प्यार
बाँटती धुआँधार
प्यारी नदियाँ।
9.
सरिता-घाट
तन अग्नि में भस्म
अंतिम सत्य।
10.
सबके छल
नदी है समेटती
कोई न भेद।
11.
सरजू तीरे
महाकाव्य-सर्जन
तुलसीदास।
12.
तड़पी नदी
सागर से मिलने,
मानो हो पिया।
13.
बेपरवाह
मिलन को बेताब
नदी बावरी।
14.
सिंधु से मिली
सर्प-सी लहराती
नदी लजाती।
15.
नदियाँ प्यासी
प्रकृति का दोहन
इंसान पापी।
16.
तीन नदियाँ
पुराना बहनापा
साथ फिरतीं।
17.
बढ़ी आबादी
कहाँ से लाती पानी
नदी बेचारी।
18.
नदी का तट
सभ्यता व संस्कृति
सदियाँ जीती।
19.
मीन झाँकती,
पारदर्शी लिबास
नदी की कोख।
20.
खूब निभाती
वर्षा से बहनापा
साथ नहाती।
21.
बूझो तो कौन?
खाती, ओढ़ती, जल
नदी और क्या!
22.
कोई न सुना
बिलखती थी नदी
पानी के बिना।
23.
नदी के तीरे
देवताओं का घर
अमृत भर।
24.
नदी बहना!
साथ लेके चल ना
घूमने जग।
25.
बाढ़ क्यों लाती?
विकराल बनके
काहे डराती?
26.
चंदा-सूरज
नदी में नहाकर
काम पे जाते।
27.
मिट जाएगा
तुम बिन जीवन,
न जाना नदी!
28.
दूर न जाओ
नदी, वापस आओ
मत गुस्साओ।
29.
डूबा जो कोई
निरपराध नदी
फूटके रोई।
30.
हो गईं मैली
बेसहारा नदियाँ
कैसे नहाए।
31.
बहती नैया
गीत गाए खेवैया
शांत दरिया।
32.
पानी दौड़ता
तटबन्ध तोड़के,
क्रोधित नदी।
33.
तुझमें डूबे
सोहनी महिवाल
प्यार का अंत।
34.
नदियाँ सूखी,
बदरा बरस जा
उनको भिगा।
35.
अपनी पीर
सिर्फ़ सागर से क्यों
मुझे भी कह।
36.
मीन मरती
पी ज़हरीला पानी
नदियाँ रोती।
- जेन्नी शबनम (13. 5. 2021)
('अप्रमेय' (2021), डॉ. भीकम सिंह जी द्वारा संपादित पुस्तक में प्रकाशित मेरे हाइकु)
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