tag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post6104051050595741536..comments2024-03-27T19:28:26.722+05:30Comments on लम्हों का सफ़र: 182. नहीं होता अभिनन्दन (क्षणिका)/ nahin hota abhinandan (kshanikaa)डॉ. जेन्नी शबनमhttp://www.blogger.com/profile/11843520274673861886noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-79656179533989191852010-10-20T10:52:03.141+05:302010-10-20T10:52:03.141+05:30सहज जीवन
मन का बंधन,
पार होने की चाह
निराशा और क्र...सहज जीवन<br />मन का बंधन,<br />पार होने की चाह<br />निराशा और क्रंदन,<br />अनवरत प्रयास<br />विफलता और रुदन,<br />असह्य प्रतिफल<br />नहीं होता अभिनन्दन !<br />शबनम जी प्रत्येक पंक्ति में जीवन की विवशता समाई हुई है । आप्ने कम से कम शब्दों में सहज जीवन में आने वाली बाधाओं को रेखांकित कर दिया है । सच है -छली और कपटी बड़े आराम से रहते हैं , सहज जीवन जीनेवाला उपेक्षा और पीड़ा भोगता है ।सहज साहित्यhttps://www.blogger.com/profile/09750848593343499254noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-3910427492495091992010-10-15T22:31:22.961+05:302010-10-15T22:31:22.961+05:30सुंदर काव्य रचना...सुंदर प्रस्तुति!
आपने बहुत ही ...सुंदर काव्य रचना...सुंदर प्रस्तुति! <br />आपने बहुत ही उम्दा रचना लिखी है!संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.com