tag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post4757246399588607858..comments2024-03-27T19:28:26.722+05:30Comments on लम्हों का सफ़र: 223. प्रवासी मन (प्रथम हाइकु लेखन, 11 हाइकु) पुस्तक - 15, 16 डॉ. जेन्नी शबनमhttp://www.blogger.com/profile/11843520274673861886noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-25225449057124177942011-03-29T16:15:45.502+05:302011-03-29T16:15:45.502+05:30सुभाष नीरव ने कहा…
जेन्नी जी
मैं भाई रामे...सुभाष नीरव ने कहा…<br /><br /> जेन्नी जी<br /> मैं भाई रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ।<br /> साहित्य की किसी भी विधा की अच्छी रचना कुछ स्वमान्यधन्य लोगों के षड्यंत्र के चलते सामने नहीं आ पाती हैं और जानबूझ कर हाशिये पर धकेल दी जाती हैं।<br /><br /> मुझे हाइकु की समझ अधिक नहीं हैं फिर भी नीचे दिये आपके दो हाइकु पर कुछ कहना चाहता हूँ, अन्यथा न लें-<br /><br /> पाँव है ज़ख़्मी<br /> राह में फैले काँटे<br /> मैं जाऊं कहाँ.<br /><br /> उक्त हाइकु में यदि आप ‘फैले’ के स्थान पर ‘बिछे’ कर दें तो सही ना होगा ?<br /> शुभकामनाओं सहित<br /> सुभाष नीरव<br />________________________________<br /><br />सुभाष जी,<br />यूँ मैं पहली बार हीं हाइकु लिखी हूँ और वो भी काम्बोज भाई के आदेश और निर्देश से| जिस हाइकु की बात आप कह रहे, शायद ज्यादा अच्छा होता अगर फैले की जगह बिछे लिखती. लेकिन लिखते समय जब इस शब्द में खुद को सोच रही थी तो ज़ेहन में पहले बिछे हीं आया था, लेकिन फिर लगा कि बिछना में तो एक सार बिछा होना होता है और मेरे ज़ेहन में कहीं कहीं कांटे बिछे थे, जैसे जिंदगी में फूल और कांटे दोनों होते हैं, तो मुझे फैले शब्द ज्यादा उपयोगी लगा था.<br />इस पर काम्बोज भाई से भी चर्चा करुँगी, हो सकता है तब ये हाइकु ज्यादा अच्छा लगे जब बिछे लिखूं.<br />तहेदिल से आपका शुक्रिया कि आपने बहुत ध्यान से इसे पढ़ा और उपयुक्त सुझाव देकर मुझे लाभान्वित किया|<br />बहुत आभार.डॉ. जेन्नी शबनमhttps://www.blogger.com/profile/11843520274673861886noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-86305894045070877802011-03-29T16:01:27.359+05:302011-03-29T16:01:27.359+05:30@रश्मि जी,
बहुत धन्यवाद.
@ उदय जी,
बहुत शुक्रिया....@रश्मि जी,<br />बहुत धन्यवाद.<br /><br />@ उदय जी,<br />बहुत शुक्रिया.<br /><br />@ आवेश जी,<br />बहुत बहुत शुक्रिया, आप यहाँ तक आये.<br /><br />@ मोनिका जी,<br />बहुत धन्यवाद.डॉ. जेन्नी शबनमhttps://www.blogger.com/profile/11843520274673861886noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-22932566346508333452011-03-29T15:58:37.709+05:302011-03-29T15:58:37.709+05:30ब्लॉगर सहज साहित्य ने कहा…
कविता का मूल उसका...ब्लॉगर सहज साहित्य ने कहा…<br /><br /> कविता का मूल उसका भाव है और जीवन-जगत के परिपक्व अनुभूत सत्यों से सशक्त भाषा रचना को रूपाकार देती है । बहन जेन्नी शबनम जी के पास जीवन के अनुभव की गहराई तो है ही , भाषा की मज़बूत पकड़ भी है । इन्होंने अपने हाइकुओं की संश्लिष्ट काया में मर्मस्पर्शी भाव पिरोकर सिद्ध कर दिया है । मैं बड़ी बात नही कह रहा हूँ -अपने चालीस वर्षों के शिक्षण काल में ऐसी ढेर सारी पाठ्यक्रमीय कविताएँ पढ़ा चुका हूँ , जो विद्यार्थियों को कविता से बिदका देती हैं । वे कविताएँ इसलिए पढ़ाई जाती हैं; क्योंकि तथाकथित बड़े लोगों द्वारा रची , अरसिक पाठ्यक्रम निर्माताओं द्वार थोपी हुई कविताएँ हैं । जेन्नी जी की कविता का एक-एक शब्द पाठक को बाँध लेता है । वही त्वरा आपके हाइकु में भी है। भाव-भाषा से पूरी तरह विभूषित , मर्मस्पर्शी ।मैंने 1986 में जब पहली बार हाइकु लिखे थे तब ऐसा ढेर सारा अधकचरा लेखन आगे आ रहा था , जो पाठकों को हाइकु के प्रति गुमराह ही कर रहा था । आज भी बहुर सारे स्वनामधन्य रचनाकार इस विधा को कचरे से पाट रहे हैं और हाइकुकार होने की गलतफ़हमी में मुब्तिला हैं। जेन्नी जैसे समर्थ रचनाकार सचमुच आशान्वित करते हैं । हमें यह याद रखना चाहिए कि कोई भी विधा अच्छी रचनाओं से ही समृद्ध होती है, तथाकथैत बड़े नामों से नहीं । अच्छी और सच्ची रचना से ही रचनाकार ज़िन्दा रहता है । बेजान रचना(उसे रचना नहीं कहना चाहिए) से रचनाकार अपने जीवनकाल में ही मर जाता है । सार्थक हाइकु -सर्जन के लिए जेन्नी बहन को हार्दिक बधाई !<br />__________________________________<br /><br />काम्बोज भाईसाहब,<br />सही कहा कि कविता ऐसी हो जिसमें आत्मा बसती हो, सिर्फ शब्दों के चयन और समन्वयन से कविता नहीं होती| यूँ तो मैं कवियत्री नहीं हूँ, महज़ अपनी वो संवेदना जो किसी से कह नहीं सकती लिखती रही हूँ, बहुत ज्यादा जानती भी नहीं इस विषय में| हाइकु के बारे में तो शायद पहली बार आपसे हीं जानी हूँ| आपकी प्रेरणा और उत्साहवर्धन से हाइकु लिखने की हिम्मत कर सकी| आपका स्नेह, आशीष और मार्गदर्शन यूँ हीं मिलता रहे ताकि कुछ अच्छा लिख सकूँ और आपकी आशाओं पर खरी उतर सकूँ| बहुत आभार आपका|डॉ. जेन्नी शबनमhttps://www.blogger.com/profile/11843520274673861886noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-15474078662733219642011-03-29T15:46:49.459+05:302011-03-29T15:46:49.459+05:30@ मृदुला जी,
सराहना के लिए शुक्रिया.
@ सुरेन्द्र ...@ मृदुला जी,<br />सराहना के लिए शुक्रिया.<br /><br />@ सुरेन्द्र जी,<br />बहुत आभार.<br /><br />@ रूपचंद्र जी,<br />बहुत शुक्रिया.डॉ. जेन्नी शबनमhttps://www.blogger.com/profile/11843520274673861886noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-49029706750898463202011-03-29T09:35:16.999+05:302011-03-29T09:35:16.999+05:30जेन्नी जी
मैं भाई रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी की ब...जेन्नी जी<br />मैं भाई रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ। <br />साहित्य की किसी भी विधा की अच्छी रचना कुछ स्वमान्यधन्य लोगों के षड्यंत्र के चलते सामने नहीं आ पाती हैं और जानबूझ कर हाशिये पर धकेल दी जाती हैं।<br /> <br />मुझे हाइकु की समझ अधिक नहीं हैं फिर भी नीचे दिये आपके दो हाइकु पर कुछ कहना चाहता हूँ, अन्यथा न लें-<br /> <br />पाँव है ज़ख़्मी<br />राह में फैले काँटे<br />मैं जाऊं कहाँ.<br /> <br />उक्त हाइकु में यदि आप ‘फैले’ के स्थान पर ‘बिछे’ कर दें तो सही ना होगा ?<br />शुभकामनाओं सहित<br />सुभाष नीरवसुभाष नीरवhttps://www.blogger.com/profile/06327767362864234960noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-12409790433989273832011-03-26T08:44:21.170+05:302011-03-26T08:44:21.170+05:30दंभ जो टूटा
फिर कैसा उल्लास
विक्षिप्त मन.
सभी हा...दंभ जो टूटा<br />फिर कैसा उल्लास<br />विक्षिप्त मन.<br /><br /><br />सभी हाइकु बहुत अच्छे लगे.... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-33342043082997777052011-03-26T08:34:55.491+05:302011-03-26T08:34:55.491+05:30sundarsundarAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/16315054585574087560noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-51165677578826019322011-03-26T08:03:22.650+05:302011-03-26T08:03:22.650+05:30samarth vegmati rachana , prabudh vicharon ki lad...samarth vegmati rachana , prabudh vicharon ki ladi . shukrya .udaya veer singhhttps://www.blogger.com/profile/14896909744042330558noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-75066373213308977322011-03-25T22:55:19.906+05:302011-03-25T22:55:19.906+05:309. विनाश होता
चहुँ ओर आतंक
प्रकृति रोती.
haiku bad...9. विनाश होता<br />चहुँ ओर आतंक<br />प्रकृति रोती.<br />haiku badhiyaa likha haiरश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-24577271658624887122011-03-25T19:55:37.126+05:302011-03-25T19:55:37.126+05:30कविता का मूल उसका भाव है और जीवन-जगत के परिपक्व अन...कविता का मूल उसका भाव है और जीवन-जगत के परिपक्व अनुभूत सत्यों से सशक्त भाषा रचना को रूपाकार देती है । बहन जेन्नी शबनम जी के पास जीवन के अनुभव की गहराई तो है ही , भाषा की मज़बूत पकड़ भी है । इन्होंने अपने हाइकुओं की संश्लिष्ट काया में मर्मस्पर्शी भाव पिरोकर सिद्ध कर दिया है । मैं बड़ी बात नही कह रहा हूँ -अपने चालीस वर्षों के शिक्षण काल में ऐसी ढेर सारी पाठ्यक्रमीय कविताएँ पढ़ा चुका हूँ , जो विद्यार्थियों को कविता से बिदका देती हैं । वे कविताएँ इसलिए पढ़ाई जाती हैं; क्योंकि तथाकथित बड़े लोगों द्वारा रची , अरसिक पाठ्यक्रम निर्माताओं द्वार थोपी हुई कविताएँ हैं । जेन्नी जी की कविता का एक-एक शब्द पाठक को बाँध लेता है । वही त्वरा आपके हाइकु में भी है। भाव-भाषा से पूरी तरह विभूषित , मर्मस्पर्शी ।मैंने 1986 में जब पहली बार हाइकु लिखे थे तब ऐसा ढेर सारा अधकचरा लेखन आगे आ रहा था , जो पाठकों को हाइकु के प्रति गुमराह ही कर रहा था । आज भी बहुर सारे स्वनामधन्य रचनाकार इस विधा को कचरे से पाट रहे हैं और हाइकुकार होने की गलतफ़हमी में मुब्तिला हैं। जेन्नी जैसे समर्थ रचनाकार सचमुच आशान्वित करते हैं । हमें यह याद रखना चाहिए कि कोई भी विधा अच्छी रचनाओं से ही समृद्ध होती है, तथाकथैत बड़े नामों से नहीं । अच्छी और सच्ची रचना से ही रचनाकार ज़िन्दा रहता है । बेजान रचना(उसे रचना नहीं कहना चाहिए) से रचनाकार अपने जीवनकाल में ही मर जाता है । सार्थक हाइकु -सर्जन के लिए जेन्नी बहन को हार्दिक बधाई !सहज साहित्यhttps://www.blogger.com/profile/09750848593343499254noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-7662766812949558262011-03-25T17:47:11.562+05:302011-03-25T17:47:11.562+05:30सबी हाइकू सारगर्भित हैं!सबी हाइकू सारगर्भित हैं!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-37413101669656363342011-03-25T14:03:07.236+05:302011-03-25T14:03:07.236+05:30'प्रेम बगिया
उजड़ना ही था
सींच न पायी '...'प्रेम बगिया <br /><br />उजड़ना ही था <br /><br />सींच न पायी '<br /><br />***********<br /><br />बहुत सुन्दर ........सभी हाइकू बेजोड़सुरेन्द्र सिंह " झंझट "https://www.blogger.com/profile/04294556208251978105noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-16325845116646854532011-03-25T13:58:48.707+05:302011-03-25T13:58:48.707+05:30waise to sabhi bahut achchi hain par ye wala kuch ...waise to sabhi bahut achchi hain par ye wala kuch vishesh hai.....mridula pradhanhttps://www.blogger.com/profile/10665142276774311821noreply@blogger.com