tag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post5845384019762247046..comments2024-03-27T19:28:26.722+05:30Comments on लम्हों का सफ़र: 299. भयडॉ. जेन्नी शबनमhttp://www.blogger.com/profile/11843520274673861886noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-57279709616596013382011-11-10T00:47:45.968+05:302011-11-10T00:47:45.968+05:30"अपनी चाहत का भय
अपनी कामना का भय,
कुछ टूट जा..."अपनी चाहत का भय<br />अपनी कामना का भय,<br />कुछ टूट जाने का भय<br />सब छूट जाने का भय !"<br /><br />फिर भी निजात संभव है ...!!***Punam***https://www.blogger.com/profile/01924785129940767667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-46665415967099920592011-11-09T23:29:08.825+05:302011-11-09T23:29:08.825+05:30बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!<b>बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!</b>मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-36966228120247016362011-11-09T21:52:19.626+05:302011-11-09T21:52:19.626+05:30बहुत अच्छी प्रस्तुति!बहुत अच्छी प्रस्तुति!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-67281393743053710772011-11-09T19:59:21.788+05:302011-11-09T19:59:21.788+05:30जीवन से मृत्युपर्यंत
भय भय भय
न निदान
न निज़ात !
...जीवन से मृत्युपर्यंत<br />भय भय भय <br />न निदान<br />न निज़ात !<br /><br />.... जन्म से मृत्युपर्यंत मानव किसी न किसी भय से ग्रस्त रहता है..कोशिश करता है इस भय से दूर होने की, पर कहाँ सफल हो पाता है...बहुत गहन और सुंदर अभिव्यक्ति..Kailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-35572446162978300902011-11-09T19:50:40.375+05:302011-11-09T19:50:40.375+05:30भय मुक्त होने के लिए आत्मा का जागृत होना आवश्यक है...भय मुक्त होने के लिए आत्मा का जागृत होना आवश्यक है!<br />भय के अनेक रूप खूब अभिव्यक्त हुए हैं!अनुपमा पाठकhttps://www.blogger.com/profile/09963916203008376590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-14185237426142861092011-11-09T17:42:06.645+05:302011-11-09T17:42:06.645+05:30इस भय से इंसान खुद ही उभर पाता है ... मन में सोच ल...इस भय से इंसान खुद ही उभर पाता है ... मन में सोच लो तो भय नहीं रहता ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-60676923948638801492011-11-09T17:23:28.049+05:302011-11-09T17:23:28.049+05:30इस खूबसूरत सार्थक रचना के लिए बधाई
नीरजइस खूबसूरत सार्थक रचना के लिए बधाई<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-23066629859982743352011-11-09T11:54:44.354+05:302011-11-09T11:54:44.354+05:30bhay......bahut gahre bhaw.....bhay......bahut gahre bhaw.....mridula pradhanhttps://www.blogger.com/profile/10665142276774311821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-2152736661370277072011-11-09T08:11:10.084+05:302011-11-09T08:11:10.084+05:30isi bhay se grasit hum arth ka anarth kerte jate h...isi bhay se grasit hum arth ka anarth kerte jate hain ...रश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-76919220959314837092011-11-09T02:49:39.629+05:302011-11-09T02:49:39.629+05:30भय के कितने रुप उकेर दिए आपने जेन्नी जी ! आपकी काल...भय के कितने रुप उकेर दिए आपने जेन्नी जी ! आपकी काल्पनाशीलता पर मुग्ध हूँ । ये भय तो सचमुच व्यक्ति को बहुत तोड़ते हैं-<br />अपने प्रेम से भय,<br />अपने क्रोध से भय<br />अपने प्रतिकार से भय,<br />अपनी चाहत का भय<br />अपनी कामना का भय,<br />कुछ टूट जाने का भय<br />सब छूट जाने का भय !सहज साहित्यhttps://www.blogger.com/profile/09750848593343499254noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-53035844569297373412011-11-09T00:00:58.407+05:302011-11-09T00:00:58.407+05:30भय का कारण अज्ञानरूपी अँधेरे में रहना है.
जैसे अँध...भय का कारण अज्ञानरूपी अँधेरे में रहना है.<br />जैसे अँधेरे में पड़ी रस्सी जब सर्प का भ्रम <br />पैदा करती है तो भय होता है.वहीँ यदि प्रकाश <br />कर दिया जाये और रस्सी का यथार्थ समझ आ जाये तो भय भी स्वत:समाप्त हो जाता है.<br /><br />इसी प्रकार हृदय में जैसे जैसे ज्ञान का प्रकाश<br />उदय होता जाता है,अवांछित भयों से भी छुटकारा <br />मिलता जाता है.<br /><br />इसलिये प्रार्थना की जाती है<br /> <br />'असतो मा सद् गमय <br /> तमसो मा ज्योतिर्गमय'<br /><br /> मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो <br /> अँधेरे से ज्योति की ओर ले चलो.<br /><br />आपकी प्रस्तुति विचारोत्तेजक और सार्थक <br />चिंतन कराती है.सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार <br />जेन्नी जी.Rakesh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-62647757032236415242011-11-08T23:53:12.956+05:302011-11-08T23:53:12.956+05:30जेन्नी,जी ..जब आदमी स्वयम गलत होता है और
अहसाश क...जेन्नी,जी ..जब आदमी स्वयम गलत होता है और <br />अहसाश करने के बाद भी बार बार गलती दोहराता है तब उसे स्वयम से भय लगने लगता है,सुंदर पोस्ट..<br />मेरे नए पोस्ट में स्वागत है...धीरेन्द्र सिंह भदौरिया https://www.blogger.com/profile/09047336871751054497noreply@blogger.com