tag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post7749993181727060082..comments2024-03-27T19:28:26.722+05:30Comments on लम्हों का सफ़र: 194. हार (क्षणिका)डॉ. जेन्नी शबनमhttp://www.blogger.com/profile/11843520274673861886noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-60838750114627928112010-12-16T21:12:53.153+05:302010-12-16T21:12:53.153+05:30"आज मैं खाली खाली सी हूँ
अपने अतीत को टटोल रह..."आज मैं खाली खाली सी हूँ<br />अपने अतीत को टटोल रही,<br />तमाम चेष्टा के बाद भी<br />सब बिखरने से रोक न पायी !<br />नहीं मालूम जीने का हुनर" आपका यह कथन सिद्ध करता है कि आप जीने का सही हुनर जानती हैं । हर हार जो हराने का कारण बनती है , वह वास्तव में आपको हराती नहीं , वरन आपके जीवन -अनुभव में नया जोड़ती है । वह अनुभव बहुत से विजय पताका फहराने वालों को रास नहीं आता । वही जीवन-अनुभव आपकी कविता की ताकत है। यही कारण है कि आपकी हर कविता नए अर्थों के साथ अपने पाठक से अपनेपन से बात करती है ।सहज साहित्यhttps://www.blogger.com/profile/09750848593343499254noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-28435540794145875452010-12-12T14:55:37.921+05:302010-12-12T14:55:37.921+05:30har haar jine ka manobal deti hai, tabhi shabdon k...har haar jine ka manobal deti hai, tabhi shabdon ki yaatra hoti hai ...रश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-63926245250517019792010-12-12T12:28:43.308+05:302010-12-12T12:28:43.308+05:30"हर हार मुझे
और हराती है!"
यह बहुत अच्छ..."हर हार मुझे<br />और हराती है!"<br /><br />यह बहुत अच्छा संकेत है कि हर हार आपको और अधिक हराती है... इसी मूल धरातल से जीत का पौधा भी उगाया जा सकता है...मैंने उगाया है...कई बार उगाया है...उन पौधों के फल मैं आज भी खा रहा हूँ...अकेले नहीं...समाज को भी खिलाने का निमित्त बन रहा हूँ... मेरा सौभाग्य!<br /><br />अपनी उक्तवत हार की ज़मीन पर आप भी उगाइए यह पौधा...आप भी खाइए फल! और हाँ... समाज को भी खिलाना न भूलिएगा...इससे स्वस्थ परम्परा बनी रहेगी...मिल-बाँट कर खाने की परम्परा...! <br /><br />अग्रिम शुभकामनाएँ!जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1828680321489310423.post-31393818118915029042010-12-12T09:12:14.541+05:302010-12-12T09:12:14.541+05:30मै तो बस इतना ही कहूँगा ," नर हो ना निराश करो...मै तो बस इतना ही कहूँगा ," नर हो ना निराश करो मन को ". नैराश्य भाव छलक रहा है अभिव्यक्ति में . सुन्दर कविता .<br />http://ashishkriti.blogspot.com/ashishhttps://www.blogger.com/profile/07286648819875953296noreply@blogger.com