मंगलवार, 20 जनवरी 2009

9. बस सुनो! मेरी सुनो! सुनते जाओ! / Bus Suno! Meri Suno! Sunte Jaao!

बस सुनो! मेरी सुनो! सुनते जाओ!

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कोई सवाल अब तुम तो न पूछो
मेरा यकीन अब तुम तो न छीनो
सवाल-जवाब और हिसाब-किताब की
यूँ ही इंतिहा है मेरी ज़िन्दगी

सदियों से अब तक का मौन है
ख़्वाहिशों की बड़ी रुस्वाइयाँ हैं
जो हूँ, जैसे हूँ, वैसे ही रहने दो
बर्फ़-सा मुझे पिघल जाने दो

न रोको मुझे, न टोको मुझे
रफ़्ता-रफ़्ता सुनो, बस सुनते जाओ
न हँसो मुझपर, न भरो आह
बस सुनो, मेरी सुनो, सुनते जाओ

नहीं कहे, कभी किसी से अपने जज़्बात
डर है, बेबाक न हो जाए मेरे अल्फ़ाज़
तुमसे कुछ जो नाता है, तक़दीर का
उम्मीद नहीं कोई, बस वास्ता है, एक हमदर्द का

तुमसे जवाब नहीं माँगती, अपने वस्ल का
न हिसाब माँगती, अपने हिज्र का
करुँगी न शिकवा, तुम्हारे वादों का
न गिला, तुम्हारे दावों का

कोई सहूलियत नहीं चाहती, अपनी परवाज़ का
जब तक दम न टूटे मेरा, बस सुनते जाओ
न विचारो न धिक्कारो मुझे
बस सुनो! मेरी सुनो! सुनते जाओ!

- जेन्नी शबनम (12. 1. 2009)
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Bus Suno! Meri Suno! Sunte Jaao!

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Koi sawaal ab tum to na puchho
Mera yakeen ab tum to na chhino
Sawaal-jawaab aur hisaab-kitaab kee
Yun hi intihaa hai meri zindgi.

Sadiyon se abtak ka maun hai
Khwaahishon ki badi ruswaaiyan hain
Jo hoon, jaise hoon, waise hin rahne do
Barf-sa, mujhe pighal jane do.

Na roko mujhe, na toko mujhe
Rafta-rafta suno, bus sunte jaao
Na hanso mujhpar, na bharo aah
Bus suno, meri suno, sunte jaao.

Nahin kahe, kabhi kisi se apne jazbaat
Dar hai, bebaak na ho jaaye mere alfaaz
Tumse kuchh jo naata hai, taqdeer ka
Ummid nahi koi, bus wasta hai, ek humdard ka.

Tumse jawab nahi maangti, apne wasl ka
Na hisaab maangti, apne hizra ka
Karungi na shikwa, tumhaare waadon ka
Na gila, tumhaare daavon ka.

Koi sahuliyat nahin chaahti, apni parwaaz ka
Jab tak dum na toote mera, bus sunte jaao
Na vichaaro na dhikkaro mujhko
Bus suno! meri suno! sunte jaao!

- Jenny Shabnam (12. 1. 2009)
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4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (08-09-2014) को "उसके बग़ैर कितने ज़माने गुज़र गए" (चर्चा मंच 1730) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (08-09-2014) को "उसके बग़ैर कितने ज़माने गुज़र गए" (चर्चा मंच 1730) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! अंतर्बाधा को पार करने की सराहनीय कोशिश !
    जन्नत में जल प्रलय !

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