बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

24. थक गई मैं

थक गई मैं

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वादा किया उसने 
उम्रभर साथ निभाने का 
लम्हों का सफ़र और रुसवा हो गया वो
जाने वादाखिलाफ़ी थी या अंत क़रीब मेरा
डर गया था वो

एक पाँव जीवन की दहलीज़ पर
दूसरा पाँव मौत की सरहद पर 
आज साथ सफ़र ख़त्म करती अपना

जीकर मौत का सफ़र देखा, शुक्रिया ख़ुदा!
अब तो जीने-मरने के खेल से उबार मुझे, ओ ख़ुदा!

ओ ख़ुदाया! तुम्हारे साथ सारे युग घुम आई
मैं तो थक गई, जाने तू क्यों न थका?

एक बार मेरी आत्मा में समा
और मेरी नज़र से देख
तू सहम न गया तो
ऐ ख़ुदा! तेरी क़सम
एक और जन्म क़ुबूल हमें !

- जेन्नी शबनम (3. 9. 2008)
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