रविवार, 22 मार्च 2009

39. अवैध सम्बन्ध

अवैध सम्बन्ध

(वर्षों पूर्व लिखी यह रचना, साझा कर रही हूँ। कानून और समाज में वैधता-अवैधता की परिभाषा चाहे जो हो, मेरी नज़र में हम सभी ख़ुद में एक अवैध रिश्ता जीते हैं; क्योंकि मन के ख़िलाफ़ जीना सबसे बड़ी अवैधता है और हम किसी-न-किसी रूप में ऐसे जीने को विवश हैं।) 

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मेरी आत्मा और मेरा वजूद दो स्वतन्त्र अस्तित्व है
और शायद दोनों में अवैध सम्बन्ध है
नहीं! शायद मेरा ही मुझसे अवैध सम्बन्ध है

मेरी आत्मा मेरे वजूद को सहन नहीं कर पाती है 
और मेरा वजूद सदैव
मेरी आत्मा का तिरस्कार करता है

दो विपरीत अस्तित्व एक साथ मुझमें बस गए
आत्मा और वजूद के झगड़े में उलझ गए
एक साथ दोनों जीवन मैं जी रही
आत्मा और वजूद को एक साथ ढो रही

मेरा मैं न तो पूर्णतः आत्मा को प्राप्त है
न ही वजूद का एकाधिकार है
और बस यही मेरा मुझसे अवैध सम्बन्ध है

एक द्वंद्व, एक समझौता, जीवन जीने का अथक प्रयास
कानून और समाज की नज़र में यही तो वैध सम्बन्ध है

दो वैध रिश्तों का ये कैसा अवैध सम्बन्ध है?
स्वयं मेरी नज़र में मेरा मुझसे अवैध सम्बन्ध है

- जेन्नी शबनम (नवम्बर, 1992)
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2 टिप्‍पणियां:

  1. AAPKI KAVITA CHORI HO CHUKI HAI
    KRIPYA DEKHE URL http://tewaronline.com/?p=865

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  2. bhanumati ji,
    aapka bahut aabhar jo aapne mujhe suchit kiya. kya kahun kaise koi aisa karta, kavita likhne wale ki santaan ki tarah hoti hai aur log chura kar apna kah dete. is chori ke karan kai community chhod di hun. ab ye blog se bhi chori ho raha. meri itni purani rachna par aapka aana aur mujhe batana aapki bahut aabhari hun. tahedil se shukriya. ab dekhe sampadak mahoday kya karte aise ghrinit vyakti par. punah aapka aabhar.

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