मंगलवार, 31 मार्च 2009

46. चुनाव! नेता!

चुनाव! नेता!

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राजनीति का दामन थामे, चलते कूटनीति की चाल
बड़ा कठिन है समझना इनको, चलते ऐसी-ऐसी चाल    

पूरे औरत-मर्द और आधे औरत-मर्द से अलग
एक नई बनी आदमी की जात,
हो जिनको दाँव-पेंच में महारत हासिल
ये हैं वो राजनीति के पंडित जात    

सिंहासन के पीछे-पीछे, नेता जी ऐसे भागते बदहवास
जैसे लाल कपड़ों के पीछे, सरपट भागे भड़का साँड़,
मज़हब-मज़हब, देश-देश का खेलते घृणित खेल
जैसे भूखे शेर और मेमनों के बीच होता खूँखार खेल    

हँसुआ से गेहूँ की बाली काटे, एक अकेला बेचारा हाथ
अपने कीचड़ से गँदले होते, सारे कमल एक साथ,
करो सवारी साइकिल पर, या हाथी पर हो सवार
लालटेन युग में आ पहुँचे, अब कैसे कटे सबकी रात   

हर पाँचवें वर्ष का है ये महोत्सव, बोली लगती जनता की
बिल में से निकल-निकल नेता जी, अब हाथ जोड़ते जनता की    
अब चाहे जो झपट ले गद्दी, बचेगी न मुल्क की आन
हर चिह्न आज़मा के हारी, अब तो इससे भली लगती, वही अँग्रेज़ी राज   

- जेन्नी शबनम (2005)
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