यही अर्ज़ होता है
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मजरूह सही, ये दर्द-ए-इश्क़ का तर्ज़ होता है
तजवीज़ न कीजिए, इंसान बड़ा ख़ुदगर्ज़ होता है।
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मजरूह सही, ये दर्द-ए-इश्क़ का तर्ज़ होता है
तजवीज़ न कीजिए, इंसान बड़ा ख़ुदगर्ज़ होता है।
आप कहते हैं कि हर मर्ज़ की दवा, है मुमकिन
इश्क़ में मिट जाने का जुनून, भी मर्ज़ होता है।
दोस्त न सही, दुश्मन ही समझ लीजिए हमको
दुश्मनी निभाना भी, दुनिया का एक फर्ज़ होता है।
आप मनाएँ हम रूठें, बड़ा भला लगता हमको
आप जो ख़फ़ा हो जाएँ तो, बड़ा हर्ज़ होता है।
खुशियाँ मिलती हैं ज़िन्दगी-सी, किस्तों में मगर
हँसकर उधार साँसे लेना भी, एक कर्ज़ होता है।
वो करते हैं हर लम्हा, हज़ार गुनाह मगर
मेरी एक गुस्ताख़ी का, हिसाब भी दर्ज़ होता है।
इश्क़ से महरूम कर, दर्द बेहिसाब न देना 'शब' को
हर दुश्वारी में साथ दे ख़ुदा, बस यही अर्ज़ होता है।
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मजरूह - घायल / ज़ख्मी
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- जेन्नी शबनम (11. 8. 2009)
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- जेन्नी शबनम (11. 8. 2009)
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jenny ji...
जवाब देंहटाएंbahut hee khoobsurat ghazal kahi hai aapne..
दोस्त न सही दुश्मन ही समझ लीजिये हमको,
दुश्मनी निभाना भी दुनिया का एक फर्ज़ होता है|
आप मनाएं हम रूठें बड़ा भला लगता हमको,
आप जो ख़फा हो जाएँ तो बड़ा हर्ज़ होता है|
खुशियाँ मिलती हैं ज़िन्दगी सी किश्तों में मगर,
हंस कर उधार साँसे लेना भी एक कर्ज़ होता है|
har sher jaise mujhse judta chala gaya....
jitni v tareef kee jaye kam hai
kya kahen hum Jenny aapke gazalon ka
जवाब देंहटाएंbud itna he khete hain shabdon ko moti banakar gehna pehna diya shayari ko jo gazal ban kar kagaz pe utar gaye...rk