शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009

88. शब ने पाले ही नहीं थे (तुकान्त) / shab ne paale hi nahin theye (tukaant)

शब ने पाले ही नहीं थे

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कुछ लम्हे ऐसे रूठ गए हैं, जैसे साथ कभी हम जिए ही नहीं थे
यूँ कि कोई साथी छूट जाए, जैसे साथ कभी हम चले ही नहीं थे 

वक़्त की उदासियों को कौन समझे, जब दिल चीखता ही नहीं
ढूँढ़ता है दिल उस ज़ालिम को, जिसे कभी हम भूले ही नहीं थे 

मज्मा रोज़ है लगता मदिरालय में, कहते कि शराब चीज़ बुरी है
बिन पिए जो होश गँवा दे, ऐसे मयखाने में हम गए ही नहीं थे 

सन्नाटों में गूँजता रहा समंदर की लहरों-सा, बेबस मासूम एक बदन
दरिंदों ने नोच डाला जिस्म, मगर एहसास जाने क्यों थमे ही नहीं थे 

शहीद-ए-वतन के तगमे से, जवान बेवा कैसे गुज़ारे सूना जीवन
जाने कल किसकी बारी, बूढे माँ-बाप ने ऐसे ख़्वाब देखे ही नहीं थे 

मंदिर-मस्जिद और गुरूद्वारे में, उम्र गुज़री हर चौखट चौबारे में
थक गए अब तो, कैसे कहते हो कि हम ख़ुदा को ढूँढ़े ही नहीं थे 

ज़माने से पूछते हो भला क्यों, मेरे गुज़रे अफ़सानों का राज़
दर्द मेरा जाने कौन, ग़ैरों के सामने हम कभी रोए ही नहीं थे 

फ़ना हो जाएँ, तो वो मानेंगे, कितना प्यार हम किए थे उनसे
मिलेंगे वो, ऐसे नामुमकिन अरमान, 'शब' ने पाले ही नहीं थे 

- जेन्नी शबनम (14. 10. 2009)
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shab ne paale hin nahin theye

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kuchh lamhe aise rooth gaye hain, jaise sath kabhi hum jiye hin nahin theye
yun ki koi saathi chhoot jaye, jaise saath kabhi hum chale hi nahin theye.

waqt kee udaasiyon ko kaun samjhe, jab dil cheekhta hi nahin
dhundhta hai dil us zaalim ko, jise kabhi hum, bhoole hi nahin theye.

majmaa roz hai lagta madiraalaye mein, kahte ki sharaab cheez buri hai
bin piye jo hosh ganwaa de, aise mayekhaane mein hum gaye hi nahin theye.

sannaton mein gunjtaa raha samandar kee lahron-saa, bebas maasoom ek badan
darindon ne noch daalaa jism, magar ehsaas jaane kyun thamye hi nahin theye.

shaheed-ae-watan ke tagmein se, jawaan bewa kaise gujaare soona jiwan
jaane kal kiski baari, budhe maa-baap ne aise khwaab dekhe hi nahin theye.

mandir-maszid aur gurudwaare mein, umra gujari har chaukhat chaubaare mein
thak gaye ab to, kaise kahte ho ki hum khuda ko dhundhe hi nahin they.

zamaane se poochhte ho bhalaa kyun, mere gujre afsaanon kaa raaz
dard mera jaane kaun, gairon ke saamne hum kabhi roye hi nahin they.

fanaa ho jaayen, to wo maanenge, kitnaa pyaar hum kiye theye unse
milenge wo, aise naamumkin armaan, 'shab' ne paale hi nahin theye.

- Jenny Shabnam (14. 10. 2009)
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2 टिप्‍पणियां:

  1. दीपावली, गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!

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  2. कुछ लम्हे ऐसे रूठ गए हैं, जैसे साथ कभी हम जिए हीं नहीं थे,
    यूँ कि कोई साथी छूट जाये, जैसे साथ कभी हम चले हीं नहीं थे|
    “ जब कोई मस्तानी सी कलम दुख्ती सी कसकों और दिखती सी आपदाओं के वीच अपने जीवन के अनन्त बैभव को अनोखे अन्होनेपन कि भाशा देता है तो अभिव्यक्ति स्वयं प्रस्फ़ुटित हो जाती है॥ bahut khoob likha hai aapne
    sachdev

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