बुधवार, 20 जनवरी 2010

119. क़र्ज़ चुकता कर लेने दे (तुकांत) / karz chukta kar lene de (tukaant)

क़र्ज़ चुकता कर लेने दे

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जाने फिर वक़्त इतनी मोहलत दे कि न दे
होश में हूँ अभी सब क़र्ज़ चुकता कर लेने दे 

इल्म ही कहाँ कि सफ़र यूँ छूट रहा मुझसे
गुज़रे सफ़र की हर दास्तान याद कर लेने दे  

किस-किस ने नवाज़ा प्रेम और दर्द से मुझे
आज बैठ ये हिसाब-किताब सब कर लेने दे  

तक़दीर ने न दिया इतना कि तोहफ़ा दे जाऊँ
ज़िन्दगी के कुछ लम्हें सौंप तुझे चैन ले लेने दे  

चंद घड़ियों में ही बीत गई क्यों ज़िन्दगानी मेरी
तुम्हारी न सुनूँगी आज मेरी कहानी कह लेने दे  

कोई नश्तर चुभा सीने में और हँस पड़ी 'शब'
'शब' जो न कह पाई कभी आज सुन लेने दे  

- जेन्नी शबनम (20. 1. 2010)
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karz chukta kar lene de

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jaane phir waqt itni mohlat de ki na de
hosh men hun abhi sab karz chukta kar lene de.

ilm hi kahaan ki safar yoon chhoot raha mujhse
guzre safar kee har daastaan yaad kar lene de.

kis-kis ne nawaza prem aur dard se mujhe
aaj baith ye hisaab kitaab sab kar lene de.

takdeer ne na diya itna ki tohfa de jaaoon
zindagi ke kuchh lamhen sounp tujhe chain le lene de.

chand ghadiyon men hi beet gayee kyon zindgaani meri
tumhaari na sunungi aaj meri kahaani kah lene de.

koi nashtar chubha seene mein aur hans padee 'shab'
'shab' jo na kah payee kabhi aaj sun lene de.

- Jenny Shabnam (20. 1. 2010)
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3 टिप्‍पणियां:

  1. कोई नश्तर चुभा सीने में और हँस पड़ी ''शब''
    ''शब'' जो न कह पाई कभी आज सुन लेने दे !
    बहुत खूब.

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  2. बहुत सुन्दर रचना । आभार
    ढेर सारी शुभकामनायें.

    Sanjay kumar
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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