सोमवार, 9 अगस्त 2010

163. मैं कितनी पागल हूँ न / main kitni paagal hun na

मैं कितनी पागल हूँ न

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मैं कितनी पागल हूँ न!
तुम्हारा हाल भी नहीं पूछी
और तपाक से माँग कर बैठी -
एक छोटा चाँद ला दो न
अपने संदूक में रखूँगी
रोज़ उसकी चाँदनी निहारुँगी

मैं कितनी पागल हूँ न!
पर तुम भी तो बस...
कहाँ समझे थे मुझे
चाँद न सही चाँदी का ही चाँद बनवा देते
मेरी न सही ज्योतिष की बात मान लेते,
सुना है चाँद और चाँदी दोनों पावन है
उनमें मन को शीतल करने की क्षमता है

देखो न मेरा पागलपन!
मैं कितना तो गुस्सा करती हूँ
जब तुम घर लौटते हो
और मेरे लिए एक कतरा वक़्त भी नहीं लाते हो
न मेरे पसंद की कोई चीज़ लाते हो
पर ज़रूरत तो सब पूरी करते हो
फिर भी मेरी छोटी-छोटी माँग
कभी ख़त्म नहीं होती है
क्या करूँ मैं पागल हूँ न!

पहले तो तुम्हारे पास सब होता था
पर अब न वक़्त है न चाँद न चाँदी
अब नहीं माँगूँगी कभी, पक्का वादा है मेरा
माँगने से क्या होता है
संदूक तो भर चूका है, अब मेरे पास भी जगह नहीं
ज़ेहन में अब चाँद और चाँदी नहीं
सभी माँग ख़त्म हो रही है
बस वक़्त का एक टुकड़ा है, जो मेरे पास बचा है
मान गई हूँ अपना सच
सच में
मैं कितनी पागल हूँ!

- जेन्नी शबनम (मई, 2000)
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main kitni paagal hun na

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main kitni paagal hun na!
tumhara haal bhi nahin puchhi
aur tapaak se maang kar baithee -
ek chhota chaand la do na
apne sandook men rakhungi
roz uski chandni nihaarungi.

main kitni paagal hun na!
par tum bhi to bas...
kahaan samajhe theye mujhe
chand na sahi chaandi ka hin chaand banawa dete
meri na sahi jyotish ki baat maan lete,
suna hai chaand aur chaandi dono paawan hai
unmen mann ko shital karne ki kshamta hai.

dekho na mera pagalpan!
main kitna to gussa karti hun
jab tum ghar loutate ho
aur mere liye ek katra waqt bhi nahin late ho
na mere pasand ki koi chiz laate ho
par zarurat to sab puri karte ho
phir bhi meri chhoti-chhoti maang
kabhi khatm nahin hoti hai
kya karun main paagal hun na!

pahle to tumhaare paas sab hota tha
par ab na waqt hai na chaand na chaandi
ab nahin maangugi kabhi, pakka waada hai mera
mangne se kya hota hai
sandook to bhar chuka hai, ab mere paas bhi jagah nahin
zehan men ab chaand aur chaandi nahin,
sabhi maang khatm ho rahi hai
bas waqt ka ek tukda hai, jo mere paas bachaa hai
maan gai hun apnaa sach
sach mein
main kitni paagal hun!

- Jenny Shabnam (may, 2000)
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10 टिप्‍पणियां:

  1. waah........is pagalpan kee gahraai napi n jaa sake , moti hi moti hain

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  2. jenny di;
    ek behtareen aur bhaawpurn rachanaa k liye badhai..!!!

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  3. bahut ache se lafzon ko piroya hai aapne......

    mere naye blog par aapka sawagat hai..apna comment dena mat bhooliyega...

    http://asilentsilence.blogspot.com/

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  4. bahut khubsurat prastuti.......:)

    kitna pyare shabd hain........" main kitnee pagal hoon na"

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  5. बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति ।

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  6. अब मेरे पास भी जगह नहीं
    ज़ेहन में अब चाँद और चाँदी नहीं,
    सभी मांग ख़त्म हो रही है
    बस वक़्त का एक टुकड़ा है,
    मान गई हूँ अपना सच
    सच में...मैं कितनी पागल हूँ न !

    aapkiek aur shreshth kavita

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