अपने पाँव
*******
क्या बस इतना ही
और सब ख़त्म!
एक क़दम भी नहीं
और सफ़र का अंत!
उम्मीद नहीं अब चल पाऊँगी
पहुँच पाऊँगी दुनिया के उस
अंतिम छोर तक
जिसे निहारती रही अनवरत वर्षों
सोचती थी
कभी तो फ़ुर्सत मिलेगी
और जा पहुँचूँगी अपने पाँव से
वहाँ उस छोर पर
जहाँ सीमा समाप्त होती है
दुनिया की।
अब नहीं जा सकूँगी कभी
बस निहारती रहूँगी
धुँधली नज़रों से
जहाँ तक भी जाए निगाह
चाहे समतल ज़मीन हो
या फिर स्वप्निल आकाश।
क़दम तो न बढ़ेंगे
पर नज़र थम-थमकर
साफ़ हो जायेगी,
फिर शायद निहारूँ
उस जहाँ को
जहाँ कभी नहीं पहुँच सकूँगी
न चल सकूँगी कभी
अपने पाँव।
- जेन्नी शबनम (8. 10. 2010)
_____________________
apne paanv
*******
kya bas itna hi
aur sab khatm!
ek kadam bhi nahin
aur safar ka ant!
ummid nahin ab chal paaungi
pahunch paaungi duniya ke us
antim chhor tak
jise niharati rahi anavarat varshon
sochti thee
kabhi to fursat milegi
aur ja pahunchungi apne paanv se
vahaan us chhor par
jahaan seema samaapt hotee hai
duniya kee.
ab nahin ja sakungi kabhi
bas nihaarti rahungi
dhundhli nazron se
jahaan tak bhi jaaye nigaah
chaahe samtal zameen ho
ya phir swapnil aakaash.
kadam to na badhenge
par nazar tham-tham kar
saaf ho jaayegi
fir shaayad nihaaroon
us jahaan ko
jahan kabhi nahi pahunch sakungi
na chal sakungi kabhi
apne paanv.
- Jenny Shabnam (8. 10. 2010)
__________________________
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क्या बस इतना ही
और सब ख़त्म!
एक क़दम भी नहीं
और सफ़र का अंत!
उम्मीद नहीं अब चल पाऊँगी
पहुँच पाऊँगी दुनिया के उस
अंतिम छोर तक
जिसे निहारती रही अनवरत वर्षों
सोचती थी
कभी तो फ़ुर्सत मिलेगी
और जा पहुँचूँगी अपने पाँव से
वहाँ उस छोर पर
जहाँ सीमा समाप्त होती है
दुनिया की।
अब नहीं जा सकूँगी कभी
बस निहारती रहूँगी
धुँधली नज़रों से
जहाँ तक भी जाए निगाह
चाहे समतल ज़मीन हो
या फिर स्वप्निल आकाश।
क़दम तो न बढ़ेंगे
पर नज़र थम-थमकर
साफ़ हो जायेगी,
फिर शायद निहारूँ
उस जहाँ को
जहाँ कभी नहीं पहुँच सकूँगी
न चल सकूँगी कभी
अपने पाँव।
- जेन्नी शबनम (8. 10. 2010)
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apne paanv
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kya bas itna hi
aur sab khatm!
ek kadam bhi nahin
aur safar ka ant!
ummid nahin ab chal paaungi
pahunch paaungi duniya ke us
antim chhor tak
jise niharati rahi anavarat varshon
sochti thee
kabhi to fursat milegi
aur ja pahunchungi apne paanv se
vahaan us chhor par
jahaan seema samaapt hotee hai
duniya kee.
ab nahin ja sakungi kabhi
bas nihaarti rahungi
dhundhli nazron se
jahaan tak bhi jaaye nigaah
chaahe samtal zameen ho
ya phir swapnil aakaash.
kadam to na badhenge
par nazar tham-tham kar
saaf ho jaayegi
fir shaayad nihaaroon
us jahaan ko
jahan kabhi nahi pahunch sakungi
na chal sakungi kabhi
apne paanv.
- Jenny Shabnam (8. 10. 2010)
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सुंदर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।
कदम तो न बढ़ेंगे
जवाब देंहटाएंपर नज़र थम थम कर
साफ़ हो जायेगी,
फिर शायद
निहारूँ
उस जहाँ को...
जहां कभी
नहीं पहुँच सकूँगी,
न चल सकूँगी कभी
अपने पाँव !
कविता का अन्त लाजवाब् है और मन को मोह लेता है ।
इतनी निराशा? ख्वाब देखिये ...ज़िंदगी का आकर्षण बना रहता है
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति
सुंदर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंकुछ आयाम मन के कदमो से भी पाए जा सकते हैं.
Hey teacher...
जवाब देंहटाएंSo depressing yaar.
Good poem but the flavor is untoward.
TC
फिर शायद
जवाब देंहटाएंनिहारूँ
उस जहाँ को...
जहां कभी
नहीं पहुँच सकूँगी,
न चल सकूँगी कभी
अपने पाँव !
-ऐसा भी क्या निराश होना....जरा कदम बढ़ाईये...
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएं