गुरुवार, 4 नवंबर 2010

186. जागता-सा कोई एक पहर जारी है (तुकांत)

जागता-सा कोई एक पहर जारी है

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रात बीती और तमन्ना जागने लगी, ये दहर जारी है
क़यामत से कब हो सामना, सोच में वो क़हर जारी है 

मुख़ातिब होते रहे, हर रोज़, फिर भी हँस न सके हम
ज़ख़्म घुला तड़पते रहे, फैलता बदन में ज़हर ज़ारी है 

शिकायत की उम्र बीती, अब सुनाने से क्या फ़ायदा
जल-जलकर दहकता है मन, ताव की लहर जारी है  

उजाला चहुँ ओर पसरा, जाने आफ़ताब है या बिजली
रात या दिन पहचान नहीं हमें, जलता शहर जारी है 

ख़ामोशी की ज़बाँ समझे जो, उससे क्या कहे 'शब'
शेष नहीं फिर भी, जागता-सा कोई एक पहर जारी है 
...............................
दहर - काल / संसार
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- जेन्नी शबनम (4. 11. 2010)
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12 टिप्‍पणियां:

  1. उजाला चहुँ ओर पसरा, जाने आफ़ताब है या बिजली
    रात या दिन पहचान नहीं हमें, जलता शहर ज़ारी है !

    ख़ामोशी की जुबां न समझे जो, उससे क्या कहे ''शब''
    शेष नहीं फिर भी, जागता सा कोई एक पहर ज़ारी है !

    क्या नजाकत से गहरी तक ले जाती हो.... बहुत बहुत बधाई |

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  2. मुख़ातिब होते रहे हर रोज़ फिर भी, हँस न सके हम
    ज़ख़्म घुला तड़पते रहे, फैलता बदन में ज़हर ज़ारी है

    बहुत मर्मस्पर्शी ...

    दीपावली की शुभकामनाएं

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  3. बहुत अच्छा पोस्ट , दीपावली की शुभकामनाये
    sparkindians.blogspot.com

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  4. बहुत बेहतरीन गज़ल!


    सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

    -समीर लाल 'समीर'

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  5. बहुत सुन्दर रचना है!
    --
    प्रेम से करना "गजानन-लक्ष्मी" आराधना।
    आज होनी चाहिए "माँ शारदे" की साधना।।

    अपने मन में इक दिया नन्हा जलाना ज्ञान का।
    उर से सारा तम हटाना, आज सब अज्ञान का।।

    आप खुशियों से धरा को जगमगाएँ!
    दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!

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  6. मुख़ातिब होते रहे हर रोज़ फिर भी, हँस न सके हम
    ज़ख़्म घुला तड़पते रहे, फैलता बदन में ज़हर ज़ारी है !
    nihshabd ek ghulte zahar ke saath hun ...

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  7. उम्दा ग़ज़ल।

    चिरागों से चिरागों में रोशनी भर दो,
    हरेक के जीवन में हंसी-ख़ुशी भर दो।
    अबके दीवाली पर हो रौशन जहां सारा
    प्रेम-सद्भाव से सबकी ज़िन्दगी भर दो॥
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
    सादर,
    मनोज कुमार

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  8. बेहतरीन गज़ल....दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें...

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  9. दिल को छू जाने वाली रचना।

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  10. gahan chintan ka parinaam hai yah sundar rachna!!!
    marmsparshi!
    regards,

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  11. अपने परिवेश में मौजूद अंतर्विरोधों के झंझावातों से जूझते संवेदनशील मन की एक बेहद संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  12. ख़ामोशी की जुबां न समझे जो, उससे क्या कहे ''शब''
    -जो खामोशी की ज़ुबाँ समझ सकता है , वही किसी इंसान की गहन अनुभूति को समझ सकता है । शबनम जी का यह कथन सोलहों आने सच है । कविता में भी ऐसा ही कुछ अनकहा होता है , जो उसका प्राण होता है , सौन्दर्य होता है । शबनम जी की रचनाएँ जीवन की तपिश की रचनाएँ हैं । ख़ुदा आपकी लेखनी का परचम और ऊँचा फहराता रहे!
    रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु।

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