सोमवार, 3 जनवरी 2011

199. अनाम भले हो

अनाम भले हो

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तुम्हारी बाहें थाम 
पार कर ली रास्ता
तनिक तो संकोच होगा 
भरोसा भले हो 

नहीं होता आसान 
आँखें मूँद चलना
कुछ तो संशय होगा 
साहस भले हो 

दायरे से निकलना 
मनचाहा करना
कुछ तो नसीब होगा 
कम भले हो 

साथ जीने की लालसा 
आतुरता भी बहुत
शायद यह प्रेम होगा 
अनाम भले हो 

- जेन्नी शबनम (3. 1. 2011)
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12 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय जेन्नी शबनम जी
    नमस्कार !
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
    खुशियों भरा हो साल नया आपके लिए

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  2. आशा उत्‍साह की जननी है। आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ति है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    बड़ा ही जानलेवा है

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  3. सुन्दर रचना!

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  4. प्यारी कविता,पूर्ण कविता। अहसासों में डूबो गई। शब्दों का चयन किया गया है या लिखते समय छलक पड़ा है समझ पाना मुश्किल है। कल्पनाओं को शब्दों में मासूमियत से पिरोया गया है।

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  5. सुन्दर भाव लिए पोस्ट बधाई |
    आपको नव वर्ष शुभ और मंगलमय हो |
    आशा

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  6. साथ जीने की लालसा
    आतुरता भी बहुत,
    शायद ये प्रेम होगा
    अनाम भले हो !

    shayad nahi yakinan ...behtriin kavy

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  7. साथ जीने की आतुरता ...साथ ही तनिक संकोच ...एक ओर भरोसा और साहस और दूसरी ओर संशय भी ...
    सुन्दर कविता !

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  8. "साथ जीने की लालसा
    आतुरता भी बहुत,
    शायद ये प्रेम होगा
    अनाम भले हो !"


    सुंदर अभिव्यक्ति..यथार्थ के नज़दीक..
    कोई संशय नहीं ये प्रेम है,
    और वो अनाम ही रह जाता है ज़िन्दगी भर..
    क्यों कि रिश्ते में बंध
    नाम मिलते ही उसका अस्तित्व घटने लगता है,
    तभी तो साथ जीने की लालसा लिए लैला-मजनू,शीरीं-फरहाद,रोमिओ-जुलिएट
    और भी ना जाने कितने अपने प्रेम को किसी रिश्ते का नाम दिए बिना फ़ना हों गए..
    और आज भी अमर हैं....
    इसलिए जब तक लालसा है तभी तक जिंदा है.

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