गुरुवार, 20 जनवरी 2011

205. तुम्हारा कंधा

तुम्हारा कंधा

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अपना कंधा
एक दिन उधार दे देना मुझे
उस दिन अपना वक़्त जैसे दिया था तुमने
तमाम सपनों की टूटन का दर्द
जो पिघलता है मुझमें
और मेरी हँसी बन बिखरता है फ़िज़ाओं में
बह जाने देना
शायद इसके बाद
खो दूँ तुम्हें  

उस वक़्त का वास्ता
जब आँखों से ज़िन्दगी जी रही थी मैं
और तुम अपनी आँखों से
ज़िन्दगी दिखा रहे थे मुझे
नहीं रुकना तुम
चले जाना बिना सच कहे मुझसे
कुछ भी अपने लिए नहीं माँगूगी मैं
वादा है तुमसे 

यक़ीनन झूठ को ज़मीन नहीं मिलती
पर एक पाप तुम्हारा
मेरे हर जन्म पर एहसान होगा
और मुमकिन है वो एक क़र्ज़
अगले जन्म में
मिलने की वज़ह बने  

तुम्हारी आँखों से नहीं
अपनी आँखों से
ज़िन्दगी देखने का मन है
भ्रम में जीने देना
मुझे बह जाने देना
अपना कंधा
एक दिन उधार दे देना  

- जेन्नी शबनम (20. 1. 2011)
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12 टिप्‍पणियां:

  1. उस वक़्त का वास्ता
    जब आँखों से
    ज़िन्दगी जी रही थी मैं
    और तुम अपनी आँखों से
    ज़िन्दगी दिखा रहे थे मुझे,
    नहीं रुकना तुम
    चले जाना
    बिना सच कहे मुझसे,
    कुछ भी
    अपने लिए
    नहीं मांगूंगी मैं
    वादा है तुमसे !

    तुम्हारी आँखों से नहीं
    अपनी आँखों से
    ज़िन्दगी देखने का मन है,
    भ्रम में जीने देना
    मुझे बह जाने देना,
    अपना कंधा
    एक दिन उधार दे देना !
    Jenny ji pehle bhi aapko maine padha hai..sach aap behadd umda likhti hain.

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  2. तुम्हारी आँखों से नहीं
    अपनी आँखों से
    ज़िन्दगी देखने का मन है,
    भ्रम में जीने देना
    मुझे बह जाने देना,
    अपना कंधा
    एक दिन उधार दे देना !
    udhaar ka kandha ... kitni vivashta hai isme , bhram se baahar nikalna kitna mushkil , use banaye rakhne ki khatir ... tumhara kandha

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  3. ओह! चाहत को पंख दे रही हैं…………बेहद उम्दा प्रस्तुति………पसन्द आई।

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  4. तुम्हारी आँखों से नहीं
    अपनी आँखों से
    ज़िन्दगी देखने का मन है,
    भ्रम में जीने देना
    मुझे बह जाने देना,
    अपना कंधा
    एक दिन उधार दे देना

    बहुत भावपूर्ण रचना ....रोने के लिए भी किसी का कंधा चाहिए ..

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  5. दिल की गहराइयों से निकली बेहतरीन अभिव्यक्ति!

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  6. "यक़ीनन झूठ को ज़मीन नहीं मिलती
    पर एक पाप तुम्हारा
    मेरे हर जन्म पर एहसान होगा,
    और मुमकिन है
    वो एक क़र्ज़
    अगले जन्म में
    मिलने की वज़ह बने !"



    बहुत खूब !

    अगले जन्म में मिलने का

    इससे अच्छा तरीका शायद ही कोई होगा...!!

    वो"पाप"मैं भी करना चाहूंगी...

    जो अगले जन्म में हमें मिला दे...!!!

    बेहतरीन...

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  7. आशा और सहयोग से लबरेज उत्तम रचना!

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  8. यक़ीनन झूठ को ज़मीन नहीं मिलती
    पर एक पाप तुम्हारा
    मेरे हर जन्म पर एहसान होगा,
    और मुमकिन है
    वो एक क़र्ज़
    अगले जन्म में
    मिलने की वज़ह बने !
    सचमुच जो तथाकथित पाप माना जाता है , आत्मा की वही व्याकुलता शायद अगले जन्म का कारण बनती हो । आप तो दर्शन की गहन बात को भी चुटकियों में प्रस्तुत करने की क्षमता रखती हैं ।

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  9. जितनी भी तारीफ करूं कम है, जेन्नी।

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  10. एक शाम मेरे नाम
    एक साँझ मेरे लिए ,
    सच कभी कभी कुछ पलों का साथ मन के कितना साथ चलता है। ...बेहतरीन अभिव्यक्ति .... !!

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