गुरुवार, 10 मार्च 2011

218. तुम शामिल हो (पुस्तक - 26)

तुम शामिल हो

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तुम शामिल हो
मेरी ज़िंदगी की 
कविता में...

कभी बयार बनकर
जो कल रात चुपके से घुस आई, झरोखे से
और मेरे बदन से लिपटी रही, शब भर

कभी ठंड की गुनगुनी धूप बनकर
जो मेरी देहरी पर, मेरी बतकही सुनते हुए
मेरे साथ बैठ जाती है अलसाई-सी, दिन भर

कभी फूलों की ख़ुशबू बनकर
जो उस रात, तुम्हारे आलिंगन से मुझमें समा गई
और रहेगी, उम्र भर

कभी जल बनकर
जो उस दिन, तुमसे विदा होने के बाद
मेरी आँखों से बहता रहा, आँसू बनकर

कभी अग्नि बनकर
जो उस रात दहक रही थी, और मैं पिघलकर
तुम्हारे साँचे में ढल रही थी
और तुम इन सबसे अनभिज्ञ, महज़ कर्त्तव्य निभा रहे थे

कभी साँस बनकर
जो मेरी हर थकान के बाद भी, मुझे जीवित रखती है
और मैं फिर से, उमंग से भर जाती हूँ

कभी आकाश बनकर
जहाँ तुम्हारी बाहें पकड़, मैं असीम में उड़ जाती हूँ
और आकाश की ऊँचाइयाँ, मुझमें उतर जाती हैं

कभी धरा बनकर
जिसकी गोद में, निर्भय सो जाती हूँ
इस कामना के साथ कि
अंतिम क्षणों तक, यूँ ही आँखें मूँदी रहूँ
तुम मेरे बालों को सहलाते रहो
और मैं सदा केलिए सो जाऊँ

कभी सपना बनकर
जो हर रात मैं देखती हूँ,
तुम हौले-से मेरी हथेली थाम, कहते हो -
''मुझे छोड़ तो न दोगी?''
और मैं चुपचाप, तुम्हारे सीने पे सिर रख देती हूँ

कभी भय बनकर
जो हमेशा मेरे मन में पलता है
और पूछती हूँ -
''मुझे छोड़ तो न दोगे?''
जानती हूँ तुम न छोड़ोगे
एक दिन मैं ही चली जाऊँगी
तुमसे बहुत दूर, जहाँ से वापस नहीं होता है कोई

तुम शामिल हो मेरे सफ़र के, हर लम्हों में
मेरे हमसफ़र बनकर
कभी मुझमें मैं बनकर
कभी मेरी कविता बनकर

- जेन्नी शबनम (5. 3. 2011)
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10 टिप्‍पणियां:

  1. कभी अग्नि बनकर
    जो उस रात दहक रही थी
    और मैं पिघल कर
    तुम्हारे सांचे में ढल रही थी
    और तुम इन सबसे अनभिज्ञ
    महज़ कर्त्तव्य निभा रहे थे !
    bahut hi arthbharee rachna, bahut achhi

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  2. तुम शामिल हो मेरे सफ़र के
    हर लम्हों में...
    मेरे हमसफ़र बनकर
    कभी मुझमें मैं बनकर
    कभी मेरी कविता बनकर !
    ek-ek shabd moti jaise damak rahe hain....

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  3. तुम शामिल हो मेरे सफ़र के
    हर लम्हों में...
    मेरे हमसफ़र बनकर
    कभी मुझमें मैं बनकर
    कभी मेरी कविता बनकर !
    --
    यही सत्य है!
    सफर में हमसफर न हो तो सफर का मजा ही क्या है!

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  4. bahut sundar abhivyakti.... vaah... umda
    kal charchamanch par aapki yah rachnaa hogi... vaha aa kar apne vicharon se anugrahit kijiyega

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  5. ''तुम शामिल हो मेरे सफ़र के
    हर लम्हों में...
    कभी मुझमें मैं बनकर
    कभी मेरी कविता बनकर ! "

    बहुत सुन्दर एहसास.....!!

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  6. जेन्नी जी Recent Visitors और You might also like यानी linkwithin ये दो विजेट अपने ब्लाग पर लगाने के लिये इसी टिप्पणी के प्रोफ़ायल द्वारा "blogger problem " ब्लाग पर जाकर " आपके ब्लाग के लिये दो बेहद महत्वपूर्ण विजेट " लेख Monday, 7 March 2011 को प्रकाशित देखें । आने ब्लाग को सजाने के लिये अन्य कोई जानकारी । या कोई अन्य समस्या आपको है । तो "blogger problem " पर टिप्पणी द्वारा बतायें । धन्यवाद । happy bloging and happy blogger

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  7. जेन्नी जी बहुत सुन्दर लगी आपकी रचना

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  8. तुम शामिल हो-कविता में बयार, फूल साँस , धूप अग्नि , जल , आकाश आदि सभी प्रतीकों को आपने बहुत ही सलीके से साध लिया है और कविता को एक मर्मस्पर्शी ऊँचाई दी है । आपकी कविताओं को पढ़ना वैसा ही है जैसा- 'दहकते आसमान के नीचे बरगद की शीतल छाया, प्यासे के लिए जैसे घुमड़ते घन ने जल बरसाया । ठिठुरते मन को जैसे गुनगुनी धूप की गरमाहट उजाड़ में उतर आए जैसे मादकता भरी फगुनाहट । उदास क्षणों में अधरों पर तिरती सुरीली तान किसी के स्पर्श से जी उठते व्याकुल प्राण

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