सोमवार, 30 मई 2011

248. न मंज़िल न ठिकाना है (तुकांत)

न मंज़िल न ठिकाना है

*******

बड़ा अजब अफ़साना है, ज़माने से छुपाना है
है बेनाम-सा कोई नाता, यूँ ही अनाम निभाना है।  

सफ़र है बहुत कठिन, रस्ता भी अनजाना है
चलती रही तन्हा-तन्हा, न मंज़िल न ठिकाना है।  

धुँधला है अक्स पर, उसे आँखों में बसाना है
जो भी कह दे ये दुनिया, अब नहीं घबराना है।  

शमा से लिपटकर अब, बिगड़ा नसीब बनाना है
पलभर जल के शिद्दत से, परवाने-सा मर जाना है।  

इश्क़ में गुमनाम होकर, नया इतिहास रचाना है
रोज़ जन्म लेती है 'शब', क़िस्मत का खेल पुराना है।  

- जेन्नी शबनम (30. 5. 2011)
______________________

13 टिप्‍पणियां:

  1. रिश्तों को निभाना तो अच्छा है ,यही सच्चा सुख है ; पर ढोना या झेलना सचमुच यातना है । हम अपनी सुविधा के लिए नाम देते हैं , पर सच्चे रिश्ते उससे भी कहीं बड़े होते हैं । इस कविता में आपके उद्गार मन के किनारों ओ भोगोते चलते हैं । ये पंक्तियाँ तो जवाब हैं- है बेनाम सा कोई नाता
    यूँ हीं अनाम निभाना है!

    जवाब देंहटाएं
  2. धुंधला है अक्स पर
    उसे आँखों में बसाना है
    जो भी कह दे ये दुनिया
    अब नहीं घबराना है ...

    मन की कोमल भावनाएं
    और चंद खूबसूरत शब्द...
    बहुत सुन्दर काव्य !!

    जवाब देंहटाएं
  3. शमा से लिपटकर अब
    बिगड़ा नसीब बनाना है!
    पलभर जल के शिद्दत से
    परवाने सा मर जाना है!
    bahut badhiyaa ...

    जवाब देंहटाएं
  4. इश्क में गुमनाम होकर
    नया इतिहास रचाना है!
    रोज़ जन्म लेती है ''शब''
    किस्मत का खेल पुराना है!

    अच्छी और प्यारी रचना...

    जवाब देंहटाएं
  5. शमा से लिपटकर अब
    बिगड़ा नसीब बनाना है!
    पलभर जल के शिद्दत से
    परवाने सा मर जाना है!

    behtareen shabdo ka chayan aur maala

    जवाब देंहटाएं
  6. '' ये मन की अभिव्यक्ति का सफ़र है, जो प्रति-पल मन में उपजता है...'' ___ जेन्नी शबनम
    '' ये मन की अभिव्यक्ति का सफ़र है, जो प्रति-पल मन में उपजता है...'' ___ जेन्नी शबनम जी हाँ डोक्टर शबनम अपने इसी अंदाज़ में लम्हों के सफर के साथ आप और हमारे बीच बहतरीन रचनाएँ बनत रही है ................बहन डोक्टर जेन्नी शबनम नै दिल्ली से भागलपुर यानी बिहार और दिल्ली तक का सफर तय कर आई हैं और अलग अलग राज्यों के लोगों के साथ ..अलग अलग हालातों को देखने के बाद उनकी मन की अभिव्यक्ति का जो सफर चला है उसकी जो उड़ान हुई है इन सब को अल्फाजों में ढाल कर बहन शबनम ने ब्लॉग की दुनिया को खुबुरत अल्फाजों से तर बतर कर दिया है ...............जनवरी २००९ में जब बहन जेन्नी शबनम ने मुनासिब नहीं है मेरा होना ..पहली रचना हिंदी और अंग्रेजी में ब्लॉग लम्हों का सफर पर लिखी तो बस फिर यह लिखती ही रहीं और आज पुरे ढाई साल के लगभग वक्त गुजरने के साथ साथ इनके अल्फाजों की धार पेनी होती जा रही है और इनके अलफ़ाज़ लोगों के जमीर को झकझोर रहे हैं ...ओशो और अमरता प्रतीतं का साहित्य पसंद करने वाली बहन शबनम साहित्य प्रेमी संघ में भी सांझा ब्लोगर हैं ...इनके हर लम्हों के सफर में ऐसा लगता है के जिंदगी की आस और जिंदगी की सांस है ऐसी रचनाकार को बधाई ..अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

    जवाब देंहटाएं
  7. है बेनाम सा कोई नाता
    यूँ हीं अनाम निभाना है!
    जेन्नी शबनम जी वास्तव में रिश्तों का महत्त्व उनको निभाने में ही है । आपकी पूरी कविता में आज का सामाजिक यथार्थ चित्रित हुआ है । हम बलपूर्पूवक गढ़े गए रिश्तों को उम्र भर झेलते और ढोते रहते हैं, जबकि रिश्तों की अन्तरंगता ही हमारे जीवन की शक्ति है । आपकी हर कविता मन के हर कोने की पड़ताल कर लेती है । आपकी इस काव्य प्रतिभा को नमन्

    जवाब देंहटाएं
  8. इश्क में गुमनाम होकर
    नया इतिहास रचाना है!
    रोज़ जन्म लेती है ''शब''
    किस्मत का खेल पुराना है!
    sunder yahi khel chalta aaraha hai
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर रचना है। वाकई

    शमा से लिपटकर अब
    बिगड़ा नसीब बनाना है!
    पलभर जल के शिद्दत से
    परवाने सा मर जाना है!

    जवाब देंहटाएं
  10. रोज़ जन्म लेती है शब !
    किस्मत का खेल पुराना है ।
    इश्क में गुमनाम होकर ,नया इतिहास रचाना है .
    आजमा चुके जिनको ,
    फिर से आजमाना है ।
    खेल पुराना ,फिर भी नया ये ज़माना है ।
    भावों को कुरेदती सी गुज़र जाती है आपकी ग़ज़ल .मर हवा .

    जवाब देंहटाएं
  11. रोज़ जन्म लेती है शब !
    किस्मत का खेल पुराना है ।
    इश्क में गुमनाम होकर ,नया इतिहास रचाना है .
    आजमा चुके जिनको ,
    फिर से आजमाना है ।
    खेल पुराना ,फिर भी नया ये ज़माना है ।
    भावों को कुरेदती सी गुज़र जाती है आपकी ग़ज़ल .मर हवा .

    जवाब देंहटाएं