शनिवार, 2 जुलाई 2011

261. विजयी हो पुत्र (पुस्तक - 52)

विजयी हो पुत्र

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मैं, तुम्हारी माँ, एक गांधारी
मैंने अपनी आँखों पे नहीं
अपनी संवेदनाओं पे पट्टी बाँध रखी है
इसलिए नहीं कि
तुम्हारा शरीर वज्र का कर दूँ
इसलिए कि
अपनी तमाम संवेदनाएँ तुममें भर दूँ। 

यह युद्ध दुर्योधन का नहीं
जिसे माँ गांधारी की समस्त शक्ति मिली
फिर भी हार हुई
क्योंकि उसने मर्यादा को तोड़ा
अधर्म पर चला 
अपनों से छल किया
स्त्री, सत्ता और संपत्ति के कारण युद्ध किया। 

मेरे पुत्र,
तुम्हारा युद्ध धर्म का है
जीवन के सच का है
अंतर्द्वंद्व का है
स्वयं के अस्तित्व का है। 

तुम पांडव नहीं
जो कोई कृष्ण आएगा सारथी बनकर
और युद्ध में विजय दिलाएगा
भले ही तुम धर्म पर चलो
नैतिकता पर चलो
तुम्हें अकेले लड़ना है और सिर्फ़ जीतना है
 
मेरी पट्टी नितांत अकेले में खुलेगी
जब तुम स्वयं को अकेला पाओगे
दुनिया से हारे, अपनों से थके
मेरी संवेदना, प्रेम, विश्वास, शक्ति
तुममें प्रवाहित होगी
और तुम जीवन-युद्ध में डटे रहोगे
जो तुम्हें किसी के विरुद्ध नहीं
बल्कि स्वयं को स्थापित करने के लिए करना है। 

मेरी आस और आकांक्षा
अब बस तुम से ही है
और जीत भी। 

- जेन्नी शबनम (22. 6. 2011)
(पुत्र अभिज्ञान के 18 वें जन्मदिन पर)
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16 टिप्‍पणियां:

  1. समाज से जूझने के लिए इससे अच्छा आशीर्वाद हो ही नहीं सकता जेन्नी जी , हमारी भी दुआएं और आशीर्वाद आपके बेटे को शक्ति और साहस से भर दें. इन्ही कामनाओं के साथ बेहतरीन कविता के लिए बधाई.

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  2. मेरी ओर से अभिज्ञान को कोटिश: बधाई ।इनका जीवन फूलो/न सा महके/आँगन की चिड़िया-सा चहके

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  3. जेन्नी शबनम जी , पुत्र के जन्म दिन के अवसर पर ये आपकी भावनाएँ ही सच्ची दीक्षा है , जो सन्मार्ग पर ले जाएँगी- "मेरे पुत्र !
    तुम्हारा युद्ध
    धर्म का है
    जीवन के सच का है
    अंतर्द्वंद का है
    स्वयं के अस्तित्व का है" जो सही रस्ते पर होते हैं , वे प्राय: अकेले पड़ जाते हैं और यही संघर्ष उनमें शक्ति का संचार करता है। आपका यह कथन नितान्त समीचीन है- "भले हीं तुम धर्म पर चलो
    नैतिकता पर चलो,
    तुम्हें अकेले लड़ना है
    और सिर्फ जीतना है|" इन पंक्तियों मेंजो ओज का स्वर है , वह सचमुच अनुकरणीय है । आपकी यह कविता , कविता मात्र नही, आपके एक-एक स्पन्दन का जीता-जागता संगीत है ,आत्मा के पावन रस से अभिषिक्त । इस तरह की कविता पढ़कर मैं श्रद्धानत हूँ। आज के दिन कामना करता हूँ कि आपकी यह लेखनी देशकाल की सीमाओं से परे तक अपनी ऊर्जा बिखेरती रहे । जीवन के सारे सुख आपको मिलें !

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  4. यथार्थ से परिपूर्ण मार्गदर्शन कराती रचना.
    अभिज्ञान को हमारी तरफ से ढ़ेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं.

    साभार
    फणि राज

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  5. अभिज्ञान को जन्मदिन पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  6. ek ma ki taraf se bahut sunder ashirvad
    merei taraf se bhi abhigyan ko bahut bahut shubhkamnaye .bhagvan usko lambiumr de
    rachana

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  7. बहुत ही अच्छा आशीर्वाद दिया है भैया को।

    सादर

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  8. ये होती है सच्ची शिक्षा……………आज ऐसी मांओ की जरूरत है और ऐसी ही शिक्षा की भी।

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  9. जेन्नी जी ! ब्लांक बुलेटिन मे आप की यह पोस्ट पढ़ी..बेटे के जन्म दिन में बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं.बेटे के लिए माँ की तरफ से इससे अच्छा उपहार और क्या होसकता है..? बहुत बहुत बधाई..

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  10. अद्भुत रचना....गहन चिंतन और उत्कृष्ट शिक्षा...
    अभिज्ञान को बधाइयां और शुभकामनाएं...
    सादर....

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  11. aap sabhi ka shukriya, yahan tak aane ke liye aur mere bete ko aashish dene ke liye.

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  12. भले हीं तुम धर्म पर चलो
    नैतिकता पर चलो,
    तुम्हें अकेले लड़ना है
    और सिर्फ जीतना है|
    मेरी पट्टी नितांत अकेले में खुलेगी
    जब तुम स्वयं को अकेला पाओगे
    दुनिया से हारे
    अपनों से थके,
    मेरी संवेदना
    प्रेम
    विश्वास
    शक्ति
    तुममें प्रवाहित होगी
    और तुम जीवन-युद्ध में डटे रहोगे
    जो तुम्हें किसी के विरुद्ध नहीं
    बल्कि
    स्वयं को स्थापित करने केलिए करना है|
    .....
    वाह जेन्नी जी वाह !
    मुझे तो लगा की आप माँ भी और कृष्ण भी आखिर इससे अच्छा सारथी और कहाँ होगा ..हो सकता है आप सारे युद्ध में इस पद पर न रह पाओ ...मगर अभी हो आप !

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  13. आपको पढना अपने आप को पढ़ना और पाना है !गहन और प्रखर अभिव्यक्ति जेन्नी जी !!

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    1. बेटे के मार्गदर्शन के लिए इस से बेहतर शब्द नहीं हो सकते...बहुत सटीक अभिव्यक्ति.. जेन्नी... बहुत बहुत बधाई

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  14. मेरी पट्टी नितांत अकेले में खुलेगी....वाह क्या पंक्ती है...पूरी कविता बेटे के मार्गदर्शन के लिए काफी है..,अतिउत्तम

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