आत्मकथा
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एक सदी तक चहकती फिरी
घर आँगन गलियों में
थी कथा परियों की
और जीवन फुदकती गौरैया-सी।
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एक सदी तक चहकती फिरी
घर आँगन गलियों में
थी कथा परियों की
और जीवन फुदकती गौरैया-सी।
दूसरी सदी में आ बसी
हर कोने चौखट चौबारे में
कण-कण में बिछती रही
बगिया में ख़ुशबू-सी।
तीसरी सदी तक आ पहुँची
घर की गौरैया अब उड़ जाएगी
घर आँगन होगा सूना
याद बहुत आएगी
कोई गौरैया है आने को
अपनी दूसरी सदी में जीने को
कण-कण में समाएगी
घर आँगन वो खिलाएगी।
याद बहुत आएगी
कोई गौरैया है आने को
अपनी दूसरी सदी में जीने को
कण-कण में समाएगी
घर आँगन वो खिलाएगी।
ख़ुद को अब समेट रही
बिखरे निशाँ पोंछ रही
यादों में कुछ दिन जीना है
चौथी सदी बिताना है
फिर तस्वीर में सिमट जाना है।
जाने कैसी ये आत्मकथा
मेरी उसकी सबकी
एक जैसी है
खिलना बिछना सिमटना
ख़त्म होती यूँ
गौरैया की कहानी है।
- जेन्नी शबनम (30. 5. 2011)
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गौरैया की कमी तो मुझे भी बहुत खिलती है
जवाब देंहटाएंवीडियो - नये ब्लोगर डैशबोर्ड से संक्षिप्त परिचय
आपकी रचना में गौरैय्या को पाकर अच्चा लगा!
जवाब देंहटाएंक्योंकि हमारे यहाँ तो पिछले 15 सालों से गौरैया गायब ही हो गईं हैं!
चौथी सदी बीताना है
जवाब देंहटाएंफिर तस्वीर में सिमट जाना है|
जाने कैसी ये आत्मकथा
मेरी उसकी सबकी
एक जैसी है,
waah !!! वाह ! लम्हों का सफर शब्दों में ढल गया ...
जाने कैसी ये आत्मकथा
जवाब देंहटाएंमेरी उसकी सबकी
एक जैसी है,
खिलना बिछना सिमटना
ख़त्म होती यूँ
गौरैया की कहानी है|... gauraiya jaisa apna sach
kyaa baat hai kya kahaani hai bhai ...akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंsundar Post.
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (11-7-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
शबनम जी की कविताओं का खज़ाना भी कितना अमूल्य है ।भावों और विचारों की खुशबू में खूब रचा-बसा । गौरैया जैसे विषय पर अनेक अर्थ की पर्तें खोलती उत्त्कृष्ट कविता है । ये पंक्तियाँ तो हृदय और बुद्धि सबको तरंगित कर देती हैं- "घर की गौरैया
जवाब देंहटाएंअब उड़ जायेगी,
घर आँगन होगा सूना
याद बहुत आएगी,
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यादों में कुछ दिन जीना है
चौथी सदी बिताना है
फिर तस्वीर में सिमट जाना है|
जाने कैसी ये आत्मकथा
मेरी उसकी सबकी
एक जैसी है,
खिलना बिछना सिमटना
ख़त्म होती यूँ
गौरैया की कहानी है|" इस गौरैया की कहानी का विस्तार तो बहुत ज़्यादा है । सबको समेटे है शबनम जी ! इस तरह के लेखन के लिए शुभकामनाएँ।
"घर की गौरैया
जवाब देंहटाएंअब उड़ जायेगी,
घर आँगन होगा सूना
याद बहुत आएगी"
"गौरैया" नाम ही सम्मोहित करता है - आपने उसे नया आयाम दिया - बधाई
बहुत ही खुबसूरत...
जवाब देंहटाएंसबकी यही कहानी।
जवाब देंहटाएंसार्थक गौरैया.
जवाब देंहटाएंगौरैया की कहानी में पूरा जीवन वृतांत है !
जवाब देंहटाएंगौरैया ....सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंpoore jeevan chakra ko shabdon me dhalkar kavita ka bahut achcha svaroop pradan kiya hai.bahut sashakt kavita.aabhar Shabnam ji.
जवाब देंहटाएंगौरैया की कमी बहुत खिलती है वाह कितना सुन्दर लिखा है आपने जवाब नहीं इस रचना का........ बहुत खूबसूरत......
जवाब देंहटाएंअस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
जवाब देंहटाएंआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,