तब हुआ अबेर
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जब मिला बेर, तब हुआ अबेर
मचा कोलाहल, चित्र दिया उकेर
छटपटाया मन, शब्द दिया बिखेर
बिछा सन्नाटा, अब जगा अँधेर
'शब' सो गई, तब हुआ सबेर।
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जब मिला बेर, तब हुआ अबेर
मचा कोलाहल, चित्र दिया उकेर
छटपटाया मन, शब्द दिया बिखेर
बिछा सन्नाटा, अब जगा अँधेर
'शब' सो गई, तब हुआ सबेर।
- जेन्नी शबनम (1. 10. 2011)
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छटपटाया मन शब्द दिया बिखेर... मन का कहने और मन का पढने में माहिर हैं आप! बधाई एक सुंदर रचना के लिए...!
जवाब देंहटाएंkuch hat ke ...
जवाब देंहटाएंbikhre shabd achchhe lage di:)
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना ,
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक प्रस्तुति , बधाई
छटपटाया मन शब्द दिये बिखेर वाह यही तो होता है हम ब्लोग्गेर्स के साथ :) है ना !!!
जवाब देंहटाएंसमय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकार करें ||
बहुत ही सुन्दर रचना.....
जवाब देंहटाएंआदरणीय जेन्नी शबनम जी,
जवाब देंहटाएंआपकी 'शब' को सादर नमन.
नमन से जब 'न' को हटाया और
शब के साथ लगाया,फिर तो
'शबनम' को ही पाया.
वाह! क्या बात है.यह तो तुकबंदी हो गई.