पाप तो नहीं
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जीवन के मायने हैं -
जीवित होना या जीवित रहना।
क्या सिर्फ़
साँसें ही तक़ाज़ा है?
फिर क्यों दर्द से व्याकुल होता है मन
क्यों कराह उठती है आत्मा
पूर्णता के बाद भी
क्यों अधूरा-सा रहता है मन?
इच्छाएँ कभी मरती नहीं
भले कम पड़ जाए ज़िन्दगी
पल-पल ख्वाहिशें बढ़ती हैं
तय है कि सब नष्ट होना है
या फिर छिन जाना है।
सुकून के कुछ पल
क्यों कभी-कभी
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जीवन के मायने हैं -
जीवित होना या जीवित रहना।
क्या सिर्फ़
साँसें ही तक़ाज़ा है?
फिर क्यों दर्द से व्याकुल होता है मन
क्यों कराह उठती है आत्मा
पूर्णता के बाद भी
क्यों अधूरा-सा रहता है मन?
इच्छाएँ कभी मरती नहीं
भले कम पड़ जाए ज़िन्दगी
पल-पल ख्वाहिशें बढ़ती हैं
तय है कि सब नष्ट होना है
या फिर छिन जाना है।
सुकून के कुछ पल
क्यों कभी-कभी
पूरी ज़िन्दगी से लगते हैं?
यथार्थ से परे
न सोचना है, न रुकना है
ज़िन्दगी जीना या चाहना
पाप तो नहीं?
- जेन्नी शबनम (23. 1. 2011)
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यथार्थ से परे
न सोचना है, न रुकना है
ज़िन्दगी जीना या चाहना
पाप तो नहीं?
- जेन्नी शबनम (23. 1. 2011)
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