गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

236. लम्बी सदी बीत रही है (क्षणिका)

लम्बी सदी बीत रही है

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सीली-सीली-सी पत्तियाँ सुलग रही हैं
जैसे दर्द की एक लम्बी सदी धीरे-धीरे गुज़र रही है
तपन जेठ की झुलसाती गर्म हवाएँ
फिर भी पत्तियाँ सील गईं
ज़िन्दगी भी ऐसे ही सील गई
धीरे-धीरे सुलगते-सुलगते ज़िन्दगी अब राख बन रही है
दर्द की एक लम्बी सदी जैसे बीत रही है

- जेन्नी शबनम (27. 4. 2011)
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