लम्बी सदी बीत रही है
*******
सीली-सीली-सी पत्तियाँ सुलग रही हैं
जैसे दर्द की एक लम्बी सदी धीरे-धीरे गुज़र रही है
तपन जेठ की झुलसाती गर्म हवाएँ
फिर भी पत्तियाँ सील गईं
ज़िन्दगी भी ऐसे ही सील गई
धीरे-धीरे सुलगते-सुलगते ज़िन्दगी अब राख बन रही है
दर्द की एक लम्बी सदी जैसे बीत रही है।
- जेन्नी शबनम (27. 4. 2011)
_____________________
*******
सीली-सीली-सी पत्तियाँ सुलग रही हैं
जैसे दर्द की एक लम्बी सदी धीरे-धीरे गुज़र रही है
तपन जेठ की झुलसाती गर्म हवाएँ
फिर भी पत्तियाँ सील गईं
ज़िन्दगी भी ऐसे ही सील गई
धीरे-धीरे सुलगते-सुलगते ज़िन्दगी अब राख बन रही है
दर्द की एक लम्बी सदी जैसे बीत रही है।
- जेन्नी शबनम (27. 4. 2011)
_____________________