सोमवार, 26 मार्च 2012

335. शब्द-महिमा (शब्द पर 10 ताँका)

शब्द-महिमा
(शब्द पर 10 ताँका)

***

1.
प्रेम-चाशनी
शब्द को पकाकर
सबको बाँटो,
सब छूट जाएगा
ये याद दिलाएगा। 

2.
शब्दों ने तोड़ी
सम्बन्धों की मर्यादा
रिश्ते भी टूटे,
यत्न से लगी गाँठ
मन न जुड़ पाया। 

3.
तुमसे जाना
शब्दों की वाचालता,
मूक-बधिर
बस एक उपाय
मन यही सुझाए। 

4.
शब्द-जाल ने
बहुत उलझाया
जन-समूह 
अब नेता को जाना-
कितना भरमाया। 

5.
शब्द-महिमा
ऋषियों ने थी मानी,
दिया सन्देश
ग्रन्थों में उपदेश
शब्द नहीं अशेष। 

6.
सरल शब्द
सहज अभिव्यक्ति
भाव गम्भीर,
उत्तेजित भाषण
खरोंच की लकीर। 

7.
प्रेम व पीर
अपने व पराये
शब्द के खेल,
मन के द्वार खोलो
शब्द तौलो तो बोलो। 

8.
शब्दों के शूल
कर देते छलनी
कोमल मन,
निरर्थक जतन
अपने होते दूर। 

9.
अपार शब्द
कराहते ही रहे,
कौन समझे
निहित भाषा-भाव
नासमझ इन्सान। 

10.
बिना शब्द के
अभिव्यक्ति कठिन
सबने माना,
मूक सम्प्रेषण है
बिना शब्दों की भाषा। 

-जेन्नी शबनम (16.3.2012)
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13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया... सुन्दर प्रभावी "ताका" रचनाएं....
    सादर.

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  2. वाह!!!!
    शब्दों का बड़ा सुन्दर "तांका" भिडाया आपने...

    बेहतरीन भाव...नियमबद्ध....

    सस्नेह
    अनु

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  3. बहुत बढ़िया रचनाएं......

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही अच्छी प्रस्तुति । धन्यवाद ।

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  5. हम तो निशब्द है जी.
    कमाल करती हैं आप भाव और शब्दों का सुन्दर संयोजन प्रस्तुत करके.

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  6. एक-एक क्षणिका दिल को छू गयी. बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आना.
    सादर
    मधुरेश

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  7. कल 11/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  8. बहुत ही सुन्दर शब्दों की महिमा व्यक्त की है आपने...
    बेहतरीन रचना....

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