मन की अभिव्यक्ति का सफ़र
बचपन की पहुँच चाँद तक ...सुंदर रचना ...शुभकामनायें ...
ऐसा लगता नहीं जेन्नी जी.आप शैतान तो नहीं रहीं होंगीं.पर अम्मा तो अम्मा हैं,बिटिया को कुछ भी कह सकतीं हैं प्यार में.
Wah!
बड़ा ही मासूम सवाल है। लगता है, कल पूर्णिमा का खूबसूरत चांद देखकर आपको यह ख्याल आया।
बैठ खेलती रही गिट्टियां, संध्या पक्के फर्श पर |खेल खेल में बढ़ा अँधेरा, खेल परम उत्कर्ष पर |चंदा मामा पीपल पीछे, छुपे चांदनी को लेकर -मैं नन्हीं नादान बालिका, फेंकी गिट्टी अर्श पर ||
:-) behad maasoom
वाह...बहुत अच्छी भावपुर्ण प्रस्तुति,.... RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
वाह ... क्या गज़ब की कल्पना है ... शरारत भरे शब्द ...
मुझे तो ऐसा ही लगता है बहन ! चाँद बेचारा अब तक अपना गाल सहला रहा होगा । खैर यह तो हुई हलकी -फुलकी बात । कभी-कभी ऐसी कविता और अधिक आनन्द दे जाती है । इसए पढ़कर मुझे पावनता का अहसास होता है ।
:)
बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दरअभिव्यक्ति.......
कोमल भावों से सजी सुंदर रचना.... समय मिले आपको तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
होता चर्चा मंच है, हरदम नया अनोखा ।पाठक-गन इब खाइए, रविकर चोखा-धोखा ।।बुधवारीय चर्चा-मंच charchamanch.blogspot.in
padhkar anaayas hi muskaan aa gayi chehre par :)
very sweet creation..
हा.हा..हा...सच कुछ भी आकर सकती हैं आप...किसी को भी हंसा सकती हैं...सुन्दर!!
वाह: बहुत ही मासूम सवाल....
bada hi pyara hai bachpan ka masum swal
bahut sundar
:)सही है ...बचपन बनाएं रखिये यह हंसाने , में समक्ष है !
हाहा.. चाँद भी मुस्कुरा उठा होगा ये पढ़कर!! :)
बचपन की पहुँच चाँद तक ...
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ...
शुभकामनायें ...
ऐसा लगता नहीं जेन्नी जी.
जवाब देंहटाएंआप शैतान तो नहीं रहीं होंगीं.
पर अम्मा तो अम्मा हैं,बिटिया को
कुछ भी कह सकतीं हैं प्यार में.
Wah!
जवाब देंहटाएंबड़ा ही मासूम सवाल है। लगता है, कल पूर्णिमा का खूबसूरत चांद देखकर आपको यह ख्याल आया।
जवाब देंहटाएंबैठ खेलती रही गिट्टियां, संध्या पक्के फर्श पर |
जवाब देंहटाएंखेल खेल में बढ़ा अँधेरा, खेल परम उत्कर्ष पर |
चंदा मामा पीपल पीछे, छुपे चांदनी को लेकर -
मैं नन्हीं नादान बालिका, फेंकी गिट्टी अर्श पर ||
:-) behad maasoom
जवाब देंहटाएंवाह...बहुत अच्छी भावपुर्ण प्रस्तुति,....
जवाब देंहटाएंRECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
वाह ... क्या गज़ब की कल्पना है ...
जवाब देंहटाएंशरारत भरे शब्द ...
मुझे तो ऐसा ही लगता है बहन ! चाँद बेचारा अब तक अपना गाल सहला रहा होगा । खैर यह तो हुई हलकी -फुलकी बात । कभी-कभी ऐसी कविता और अधिक आनन्द दे जाती है । इसए पढ़कर मुझे पावनता का अहसास होता है ।
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति.......
कोमल भावों से सजी सुंदर रचना.... समय मिले आपको तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंhttp://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
होता चर्चा मंच है, हरदम नया अनोखा ।
जवाब देंहटाएंपाठक-गन इब खाइए, रविकर चोखा-धोखा ।।
बुधवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.in
padhkar anaayas hi muskaan aa gayi chehre par :)
जवाब देंहटाएंvery sweet creation..
जवाब देंहटाएंहा.हा..हा...सच कुछ भी आकर सकती हैं आप...किसी को भी हंसा सकती हैं...सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंवाह: बहुत ही मासूम सवाल....
जवाब देंहटाएंbada hi pyara hai bachpan ka masum swal
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंbahut sundar
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जवाब देंहटाएंसही है ...बचपन बनाएं रखिये यह हंसाने , में समक्ष है !
हाहा.. चाँद भी मुस्कुरा उठा होगा ये पढ़कर!! :)
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