गुरुवार, 7 जून 2012

350. पाप-पुण्य

पाप-पुण्य

***

पाप-पुण्य के फ़ैसले का भार 
क्यों नहीं परमात्मा पर छोड़ते हो  
क्यों पाप-पुण्य की मान्य परिभाषाओं में उलझकर 
क्षण-क्षण जीवन व्यर्थ गँवाते हो
जबकि परमात्मा की सत्ता पर पूर्ण भरोसा करते हो।  

हर बार एक द्वन्द्व में उलझ जाते हो
और फिर अपने पक्ष की सत्यता को प्रमाणित करने 
कभी सत्ययुग, कभी त्रेता, कभी द्वापर तक पहुँच जाते हो 
जबकि कलयुगी प्रश्न तुम्हारे होते हैं  
और अपने मुताबिक़ पूर्व निर्धारित उत्तर देते हो। 

एक भटकती ज़िन्दगी बार-बार पुकारती है
बेबुनियाद सन्देहों और पूर्व नियोजित तर्क के साथ 
बहुत चतुराई से बच निकलना चाहते हो  
कभी सोचा कि पाप की परिधि में क्या-क्या हो सकते हैं
जिन्हें त्यागकर पुण्य कमा सकते हो। 

इतना सहज नहीं होता 
पाप-पुण्य का मूल्यांकन स्वयं करना 
किसी का पाप किसी और का पुण्य भी हो सकता है 
निश्चित ही पाप-पुण्य की कसौटी कर्त्तव्य पर टिकी है 
जिसे पाप माना, वास्तव में उससे पुण्य कमा सकते हो। 

-जेन्नी शबनम (7.6.2012)
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21 टिप्‍पणियां:

  1. सच, नहीं है सहज पाप पूण्य का मूल्यांकन...!

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  2. VICHAARNIY KAVITA HAI . BAHUT - BAHUT
    BADHAAEE .

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  3. पाप-पुण्य का मूल्यांकन स्वयं करना सहज नही है ....

    MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,

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  4. वाकई, सहज नहीं होता पाप-पुण्य का मूल्यांकन कर पाना..अक्सर होता है ऐसा कि जो चीज़ किसी के लिए ग़लत थी.. वही किन्ही और के लिए बहुत सही साबित हुई.. परिपेक्ष्य मायने रखता है..
    बहुत ही सुन्दरता से इन भावनाओं को काव्य का रूप दिया है आपने..
    सादर शुभकामनाएं!

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  5. किसी का पाप किसी और का पुण्य भी हो सकता है
    निश्चित ही पाप-पुण्य की कसौटी कर्त्तव्य पर टिकी है
    और जिसे पाप माना वास्तव में उससे पुण्य कमा सकते हो !

    बिलकुल सही बात बेहतरीन अभिव्यक्ति के साथ .....
    शुभकामनायें जेन्नी जी ....

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  6. सही कहा जेन्नी जी हमें पाप-पुण्य के फैसले का भार ईश्वर पर छोड़ दे ना चाहिए .....

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  7. इतना सहज नहीं होता
    पाप-पुण्य का मूल्यांकन स्वयं करना.....sach kahin....

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  8. किसी का पाप किसी और का पुण्य भी हो सकता है
    yahi baat agar duniyaa ko samjh mein aa jaaye to baat hee kyaa hai

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  9. किसी का पाप किसी और का पुण्य भी हो सकता है
    निश्चित ही पाप-पुण्य की कसौटी कर्त्तव्य पर टिकी है .. बहुत सही कहा है आपने ...

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  10. "इतना सहज नहीं होता
    पाप-पुण्य का मूल्यांकन स्वयं करना
    किसी का पाप किसी और का पुण्य भी हो सकता है
    निश्चित ही पाप-पुण्य की कसौटी कर्त्तव्य पर टिकी है
    और जिसे पाप माना वास्तव में उससे पुण्य कमा सकते हो"

    पूरी तरह सहमत।

    सादर

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  11. "किसी का पाप किसी और का पुण्य भी हो सकता है
    निश्चित ही पाप-पुण्य की कसौटी कर्त्तव्य पर टिकी है
    और जिसे पाप माना वास्तव में उससे पुण्य कमा सकते हो !"
    बिल्कुल सही कहा है आपने। एक झूठ जो किसी निर्दोष की जिंदगी बचाए, कम पावन नहीं!

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  12. इतना सहज नहीं होता
    पाप-पुण्य का मूल्यांकन स्वयं करना
    किसी का पाप किसी और का पुण्य भी हो सकता है
    निश्चित ही पाप-पुण्य की कसौटी कर्त्तव्य पर टिकी है
    और जिसे पाप माना वास्तव में उससे पुण्य कमा सकते हो !

    शबनम जी ,
    यदि भगवतीचरण वर्मा के शब्दों में कहू तो पाप और पुण्य कुछ भी नही है,यह जीवन की दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है । बहुत सुंदर प्रस्तुति ।मेरा नया पोस्ट आपका इंतजार कर रहा है ।

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  13. बेनामीजून 09, 2012 9:53 am

    बहोत अच्छी प्रस्तुती है

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  14. aapne apni kavitaa ke madhyam se paap aur punya ko bahut achchhe se pribhashit kiya hai jo kabile tareepf hai.

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  15. पाप और पुण्य का मूल्यांकन वाकई कठिन है...
    सटीक और सारगर्भित रचना!!!

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  16. बेहतरीन प्रस्‍तुति। मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।

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  17. इतना सहज नहीं होता
    पाप-पुण्य का मूल्यांकन स्वयं करना
    किसी का पाप किसी और का पुण्य भी हो सकता है

    .....बहुत सच कहा है..कहाँ इतना आसान होता है पाप, पुण्य का निर्धारण करना...बहुत सशक्त अभिव्यक्ति...

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  18. सच कहा है ... हर किसी की अपने परिभाषा है ... और अपने आप कों साफ़ रकने कों सब अपनी परिभाषा गढ़ भी लेते हैं ... इसलिए बार कर्म करना बेहतर ... पाप पुन्य उस पर छोड़ देना चाहिए ...

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