सात पल
मुट्ठी में वर्षों से बंद
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वक़्त का हर एक लम्हा
कब गिर पड़ा
कुछ पता न चला
महज़ सात पल रह गए
क्योंकि उन पलों को
मैं हथेली की जीवन रेखा में
नाखून से कुरेद-कुरेदकर
ठूँस दी थी
ताकि
कोई भी बवंडर इसे छीन न सके,
उन सात पलों में
पहला पल
जब मैंने ज़िन्दगी को देखा
दूसरा
जब ज़िन्दगी ने मुझे अपनाया
तीसरा
जब ज़िन्दगी ने दूर चले जाने की ज़िद की
चौथा
जब ज़िन्दगी मेरे शहर से बिना मिले लौट गई
पाँचवा
जब ज़िन्दगी के शहर से मुझे लौटना पड़ा
छठा
जब ज़िन्दगी से वो सारे समझौते किए जो मुझे मंज़ूर न थे
सातवाँ
जब ज़िन्दगी को अलविदा कह दिया,
अब कोई आठवाँ पल नहीं आएगा
न रुकेगा मेरी लकीरों में
न टिक पाएगा मेरी हथेली में
क्योंकि मैं मुट्ठी बंद करना छोड़ दी हूँ।
- जेन्नी शबनम (21. 7. 2012)
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SUNDAR BHAVABHIVYAKTI KE LIYE BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .
जवाब देंहटाएंपल रेत की तरह होते है मुट्ठियों में ज्यादा जोर से कसने पर पोरों के बीच से फिसल कर गम हो जाते है
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
गहन और बहुत खूब्सूरत अभिव्यक्ति ...हृदय छू गयी ....कुछ शब्दों मे पूरी यात्रा का विवरण ...अद्भुत ...!!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें जेन्नी जी ...!!
Aah!Anginat pal mutthee se fisal jate hain.....pata nahee chalta kab band mutthee khul jatee hai!
जवाब देंहटाएंऐसा आप कभी मत सोचिये आप के जाने के बाद आपके सत्कर्म या कहूँ खुबसूरत यादें हम कहाँ भूल पाएंगे .
जवाब देंहटाएंशायद यही आपका धर्म आपको सदियों तक जिंदा रखे हमारे बीच.
वाह! जेन्नी जी.
जवाब देंहटाएंसात पलों की बात आपने
बहुत ही खूबसूरती से पल
भर में ही बता दी.
आपके लम्हों का सफर शानदार है जी.
आभार.
waah ....bahut acchi prastuti...
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर जेन्नी जी.....
जवाब देंहटाएंमगर क्या पता आठवां पल आ जाये पुनर्जन्म के रूप में...
अनु
bahut kuch kahti rachna .........
जवाब देंहटाएंbahut kuch kahti rachna .........
जवाब देंहटाएंअब कोई आठवां पल नहीं आएगा
जवाब देंहटाएंन रुकेगा मेरी लकीरों में
न टिक पायेगा मेरी हथेली में
क्योंकि मैंने मुट्ठी बंद करना छोड़ दिया है !
सही कहा....
मुठ्ठी खुली हो तो कुछ भी नहीं ठहरता...
जेनी शबनम जी की नवीन कल्पना केवल चमत्कृत ही नहीं करती बल्कि झिंझोड़ती भी है । आज के दौर में जब तथाकथित बड़े और स्थापित कवि केवल अपने लिए लिख रहे हैं , खुद ही उस लिखे को समझ रहे हैं; ऐसे दौर में जेन्नी जी का रचनाकर्म आश्व्स्त करता है , हरेक को अपनी कविता के भीतर उसका चेहरा दिखा देता है। इस कविता को पढ़कर जीवान का जो स्वरूप सामने आता है , बस आह ! निकलती है कि सारा जीवन यूँ ही चला गया । इस गुणात्मक कविता के लिए मेरी हार्दिक बधाई !!
जवाब देंहटाएंbahut kuch kahti sundar rachna .........kaphi pasand aayi
जवाब देंहटाएंsaato pal sunderta se likhi hain.....
जवाब देंहटाएंआज 26/07/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
मार्मिक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंजीवन में जब सब कुछ मिल जाय तो चाहत नहीं रहती ... पर समय का क्या पता ... न चाहते हुवे भी झोली में कुछ पल डाल दे ...
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी...... अपने मन के से भाव.....
जवाब देंहटाएंअद्भुत नजरिया है... क्या क्या नहीं समेट लिया है... वाह!
जवाब देंहटाएंसादर