शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

364. यादें (क्षणिका)

यादें

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यादें, बार-बार सामने आकर 
अपूर्ण स्वप्न का अहसास कराती हैं 
कभी-कभी मीठी-सी टीस दे जाती हैं 
कचोटती तो हर हाल में है, चाहे सुख चाहे दुःख 
शायद रुलाने के लिए यादें, ज़ेहन में जीवित रहती हैं। 

- जेन्नी शबनम (10. 8. 2012)
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