कुछ सुहाने पल...
मुट्ठी में बंद
(मेरा प्रथम चोका)
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कुछ सुहाने पल
ज़रा लजाते
शरमा के बताते
पिया की बातें
हसीन मुलाकातें
प्यारे-से दिन
जग-मग-सी रातें
सकुचाई-सी
झुकी-झुकी नज़रें
बिन बोले ही
कह गई कहानी
गुदगुदाती
मीठी-मीठी खुशबू
फूलों के लच्छे
जहाँ-तहाँ खिलते
रात चाँदनी
अँगना में पसरी
लिपट कर
चाँद से फिर बोली -
ओ मेरे मीत
झीलों से भी गहरे
जुड़ते गए
ये तेरे-मेरे नाते
भले हों दूर
न होंगे कभी दूर
मुट्ठी ज्यों खोली
बीते पल मुस्काए
न बिसराए
याद हमेशा आए
मन को हुलासाए !
- जेन्नी शबनम (जुलाई 30, 2012)
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