शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

402. जन्म का खेल (7 हाइकु) पुस्तक 34,35

जन्म का खेल

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1.
हर जन्म में 
तलाशती ही रही 
ज़रा-सी नेह। 

2.
प्रतीक्षारत 
एक नए युग की 
कई जन्मों से। 

3.
परे ही रहा 
समझ से हमारे 
जन्म का खेल। 

4.
जन्म के साथी 
हो ही जाते पराए
जग की रीत। 

5.
रोज़ जन्मता 
पल-पल मरके 
है वो इंसान। 

6.
शाश्वत खेल 
न चाहें पर खेलें 
जन्म-मरण। 

7.
जितना सच 
है जन्म, मृत्यु भी है 
उतना सच। 

- जेन्नी शबनम (26. 4. 2013)
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10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (27-04-2013) कभी जो रोटी साझा किया करते थे में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति. जन्म का खेल.....

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  3. शाश्वत खेल
    न चाहें पर खेलें
    जन्म-मरण !
    .... सभी हाइकु एक से बढ़कर एक
    बेहतरीन प्रस्‍तुति

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  4. वाह...
    जन्म से कितने सुन्दर हायकू जन्में.....

    सादर
    अनु

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  5. सच है जन्मो का खेल भी निराला ही होता है..बहुत सुन्दर..

    जवाब देंहटाएं
  6. जितना सच
    है जन्म, मृत्यु भी है
    उतना सच !

    जीवन का सबसे बड़ा सच !

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  7. शाश्वत सत्य का प्रभावशाली चित्रण

    जवाब देंहटाएं
  8. जन्म के साथी
    हो ही जाते पराए
    जग की रीत....

    कितना दुखद होता है ये सच!
    बहुत अच्छे लगे आपके हाइकू...
    सादर/सप्रेम


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